प्रगति अपनी बारी के इंतजार में, अस्पताल में,मरीज़ों की पंक्ति में बैठी थी। इतने बीमार लोगों की ,भीड़ थी। हर कोई परेशान नजर आ रहा था, किसी को कुछ न कुछ बीमारी थी। प्रतीक्षा करते-करते उसे काफी देर हो गई , तभी उसका नाम बुलाया गया और डॉक्टर ने उसको एक्स -रे कराने के लिए भेज दिया। आजकल बिना किसी टेस्ट के, बिना'' एक्स -रे'' या'' सीटी स्कैन'' किए बगैर,डॉक्टर को बीमारी का पता ही नहीं चलता। वे वैद्य और ही होते थे जो नब्ज देखकर, बीमारी पकड़ लिया करते थे। अब प्रगति ''एक्स -रे '' की लाइन में जाकर बैठ गई। तभी उसने देखा, एक नया मरीज आया है, एक अधेड़ उम्र महिला जोर -जोर से कराह रही है। उसके साथ में एक महिला और एक लड़का भी है। प्रगति ने अंदाजा लगाया, हो ना हो ,यह उसका बेटा ही होगा। यह महिला इसकी बहू भी हो सकती है या कोई और रिश्तेदार..... क्या करें? प्रतीक्षा करना भी तो आसान नहीं है, इसीलिए मन ने , अपने विचारों रूपी घोड़े दौड़ा दिए।
किसी अनजान से ,इस तरह बात भी नहीं कर सकते ,पूछ भी नहीं सकते। प्रगति ने देखा ,वह महिला , उस अधेड़ उम्र महिला की , कभी पीठ सहला रही है , कभी उसके हाथ सहला रही है, उसके इर्द-गिर्द घूमकर जो भी उससे संभव हो सकता है , उसके दर्द को कम करने का प्रयास कर रही है। प्रगति को बहुत अच्छा लगा, कि कोई इसके लिए, इतना परेशान है, उसके दर्द को महसूस कर पा रहा है। जब उस महिला को एक्स -रे कराने के लिए ले जाया गया। तब प्रगति को उस महिला से बात करने का मौका मिला जो उसकी सेवा में तत्पर थी। उसने बताया -कि वह उसी महिला की सास है, जिसका गड्ढे में पैर पड़ने पर लगता है ,उसके पैर की हड्डी टूट गई है इसीलिए उसे यहां लाया गया है और वह लड़का भी उसका बेटा है। यानी दोनों पति-पत्नी अपनी मां को लेकर अस्पताल में आए थे।
उस महिला को दवाई देकर ,उसके दर्द को कम किया गया ,अब उसकी कराहट कम हो गई है। प्रगति का अपना कार्य हो जाने पर, वह अपने घर आ जाती है। न जाने क्यों ?उसे यह बात अच्छी लग रही थी ? कि दोनों पति-पत्नी , अपना कार्य छोड़कर अपनी मां की सेवा में लगे थे। संयोग से, प्रगति का उस अस्पताल में दोबारा जाना हुआ। वह महिला उसे फिर से दिख गई, जिसका पैर टूटा हुआ था। उस वक्त उसके पास कोई नहीं था। शायद ,उसकी रिपोर्ट दिखाने और दवाई लेने गए हों , प्रगति ने अंदाजा लगाया
प्रगति में उस महिला से पूछा -अब आप कैसी हैं ?और अपना परिचय दिया, यह भी बताया, जिस दिन उनको चोट लगी थी ,वह उनकी बहू से मिली थी और उनकी बहू की'' सराहना'' भी की -आपकी बहू कितनी अच्छी है ? आपके लिए कितनी परेशान हो रही थी और आपकी सेवा कर रही थी।
इस बात से वह महिला खुश नहीं हुई और चुप हो गई। कुछ देर बाद बोली -मेरी दो बहुएं हैं , एक नौकरी करती है, कहते हुए, उसके चेहरे पर गर्व और प्रसन्नता थी और एक वह है , जिसे आपने देखा -दिव्या ! वह घर पर ही रहती है, घर का ही कार्य करती है। उनके चेहरे पर दिव्या के लिए वह भाव नहीं आए जो उनके चेहरे पर अपनी दूसरी बहू के लिए थे ,जो नौकरी करती है।
यह देखकर प्रगति को बुरा लगा , उसे अपने कुछ दिन पहले के वो दिन स्मरण हो आये। जिनको स्मरण करते ही, उसका जीवन कड़वाहट से भर जाता है। अपने विचारों के घोड़ों को थाम कर , उस महिला से बोली -यदि वह ना होती, और वह भी नौकरी कर रही होती , तब उस दिन आप ,उसी हालत में वहीं पड़ी रहीं होतीं , वह तो अच्छा हुआ, एक बहू नौकरी नहीं करती वरना न जाने उस दिन क्या होता ? यह कहकर, अपनी दवाई लेकर वह बाहर आ गई। मन ही मन सोच रही थी, लोगों के कैसे विचार हो गए हैं ? कम से कम जो व्यक्ति उस समय पर ,उनके काम आ रहा है , उसकी प्रशंसा- सराहना तो कर ही सकते हैं। तभी तो आज, चूल्हे -चोेके को छोड़कर, महिलाएं, नौकरी करना ज्यादा पसंद करती हैं।
एक ग्रहणी, जो घर में रहती है, चौबीसों घंटे उसे, कुछ ना कुछ कार्य लगा ही रहता है , पहले नाश्ता ,घर की सफाई , कपड़े धोना, स्त्री करना, दोपहर का खाना, बच्चों को पढाना, शाम की चाय के पश्चात ,रात्रि का भोजन ,इस सबके मध्य बच्चों की कुछ नई फरमाइश हो जाये तो उसे पूर्ण करना या फिर कोई मेहमान आ जाए तो कार्य बढ़ जाता है , उसके कार्य की कोई सराहना नहीं करता। अक्सर सुनने को मिलता-'' तुमने दिन भर किया ही क्या है अथवा करती ही क्या हो ?'' यह नहीं सोचा कि सारा दिन कार्य करके भी वह अपने परिवार के लिए सोचती है, घर की जैसी भी आमदनी हो, उसी में अपने को खुश रखने का प्रयास करती है। किंतु उसके काम की कभी उसे'' सराहना ''नहीं मिली। जिसका परिणाम यह हुआ , अब स्वयं वे ही महिलाएं अपनी बेटियों के पढ़ने पर जोर देती हैं, और नौकरी करने की उन्हें सलाह देती हैं। परिणाम स्वरूप आज घरों की रसोइयों में , घर की लक्ष्मी खाना नहीं पकाती है , या तो बाहर से रसोईया आता है, या फिर खाना ही बाहर से आ जाता है।
नौकरी वाली लड़की का सम्मान होता है, उससे कोई कुछ कह नहीं सकता, अपनी मनमर्जी करती है। हालांकि कुछ महिलाएं आज भी ऐसी हैं जो नौकरी भी करती हैं और घर के कार्यों को भी, बखूबी संभालती हैं। यह उनकी मजबूरी भी कह सकते हैं, कि उन्हें दोेहरी जिंदगी जीनी पड़ रही है। किंतु क्या कभी किसी ने सोचा है -घर में अचानक इस तरह से घटना हो जाती है, यदि उस दिन दिव्या उस समय पर घर में ना होती , तो उसकी सास के साथ क्या होता? कभी सोचा है, घर के बड़े -बुजुर्ग हैं, उनकी दवाई गोलियां हैं , उनको समय पर भोजन देना होता है , ऐसे न जाने कितने कार्य हैं जो हम ग्रहणियाँ संभालती थीं , किंतु कभी उसे,उसके काम की 'सराहना 'नहीं मिली। कभी दो शब्द उसे प्यार के नहीं मिले, अपनेपन का हाथ किसी ने बढ़ाया नहीं। कोई -कोई ससुराल वाला तो ऐसा है, काम के साथ-साथ उसे दुत्कार ही मिली। तभी तो आज किडीज़ स्कूल और व्रद्धाश्रम बढ़ रहे हैं। पढ़ी-लिखी नौकरी वाली बहू को चाहिए, मैं और मेरा पति इसीलिए तो परिवार टूट रहे हैं। या उसके दफ्तर जाने के पश्चात, घर को संभालने वाले सास -ससुर ! जो अभी अपने कार्य करने में सक्षम हैं , वरना'' वृद्ध आश्रम ''तो हैं ही।
सोचकर ही प्रगति की आँखें नम हो आईं ,जैसे उसके मन का 'दर्द 'आज भी कहीं सुप्त अवस्था में उसके ह्रदय में विराजमान है।