किशोरी अपने घर की छत पर खड़ी, उस लड़के को देख रही थी। जो अभी -अभी गाड़ी से उतरा है। शायद ,पड़ोसी के घर में, वह मेहमान बन कर आया है। शायद ,उनका कोई रिश्तेदार है। अनेक अटकलें लगा बैठी। देखने में बहुत ही सुंदर -सजीला नौजवान है। किशोरी ने उसे देखा ,तो देखती ही रह गई। हवा उसके पास से होकर गुजर गई , उसका दुपट्टा भी लहराया , उसकी जुल्फें उड़ीं , सबसे बेपरवाह किशोरी उसे ही देखती रही। जब तक वह अन्य लोगों के साथ अंदर नहीं चला गया। उसके जाते ही उसे, यथार्थ का भान हुआ और वह नीचे दौड़ी और अपनी मम्मी से बताया -लगता है , पड़ोस के घर में, कुछ मेहमान आए हैं।
हां आए होंगे, गर्मियों की छुट्टियां चल रही है ,शायद दिव्या की बुआ आई हो ! अक्सर वही इन गर्मी की छुट्टियों में आती हैं। उसकी छवि, तो जैसे किशोरी के मन में छप गई। उस छवि को लिए वह अपने कमरे में गई और किताबें खोलने का उपक्रम करने लगी, किंतु उसे स्मरण ही नहीं रहा ,कि उसे पढ़ना क्या है ? कौन सी किताब उसे लेनी है ? ध्यान तो उसका ,उस अनजान छवि पर था। जो उसके दिल में रच -बस गई थी। उसकी इच्छा हुई ,कि एक बार जाकर उससे मिले , उसका नाम पूछे , उसके विषय में जाने ,किंतु ऐसा नहीं हुआ। ऐसे ,कैसे वह किसी के घर जा सकती है ,कोई बहाना भी तो होना चाहिए। शायद ,शाम को छत पर मिलना हो जाए इसी शायद,की उम्मीद के साथ , वह कार्य में व्यस्त हो गई। किंतु उसका व्यस्त होना, सिर्फ दिखावा था ,मन तो उसका कहीं और था।
सारा दिन ,एक-एक पल न जाने कैसे बीता ? शाम होते ही वह छत पर, पानी से छिड़काव करने लगी। बार-बार बराबर की छत पर भी देख लेती। पंखा भी लगा दिया, संपूर्ण तैयारी ऐसे कर ली थी जैसे वह यहीं आने वाला है। पड़ोस की छत पर भी चहल-पहल होने लगी , उसने झांक कर देखा कुछ लोग हैं और बातचीत हो रही है। किंतु वह कहां है ? जिसे मैंने सुबह देखा था। व्यग्रता बढ़ने लगी, उसे इस बात का भी भान नहीं रहा, कोई उसे इस तरह दूसरे की छत पर झांकते देखेगा ,तो क्या समझेगा ? एक महिला ने उसे देख भी लिया, किशोरी ने तुरंत उसको नमस्ते आंटी जी ! कहकर अभिवादन किया। उन्होंने नमस्ते ले ली और फिर अपनी बातों में व्यस्त हो गईं। तब किशोरी ने कहा -आंटी जी !आपने मुझे पहचाना नहीं , मैं किशोरी !
अच्छा !तुम किशोरी हो, आश्चर्य से बोलीं -कितनी बड़ी हो गई हो ? तब तुम मुझे आंटी जी क्यों कह रही हो ? बुआ कहो ! मन ही मन किशोरी ने सोचा -मम्मी ! सच ही कह रही थीं , उनकी बुआ आई हैं। किंतु इसके लिए वह इतनी देर से इस दीवार पर लटकी हुई है ,वह तो कहीं दिखलाई भी नहीं दे रहा। उसका मन तो कर रहा था कि दीवार से पर कूदकर उसी छत पर चली जाए , किंतु झिझक ने उसे रोक दिया। कुछ देरी इसी तरह प्रतीक्षा में रही, और उसकी प्रतीक्षा सफल भी हुई। कुछ ही देर में ,वो कुर्ते -पायजामे में ,छत पर आया। शायद अभी नहा कर आया है , किशोरी को लग रहा था ,जैसे अभी वह गिर जाएगी। उससे रहा नहीं गया और बोली-बुआ जी ! यह कौन है ?
यह ,ये श्याम है , मेरी ननंद का लड़का ! हमारे साथ ही आया है।
ओह अच्छा! कह कर पीछे हट गई, मन ही मन गुदगुदी हो रही थी ,और मन बार -बार कह रहा था -वो 'श्याम' है। प्रसन्न मुद्रा से आकाश की तरफ देखने लगी ,उन बादलों में भी उसे श्याम की छवि नजर आ रही थी। अगले दिन छत पर कोई नहीं था , हां ,श्याम अकेला था।
हेलो !किशोरी ने श्याम को संबोधित किया। मैं किशोरी ! साथ ही उसने अपना परिचय भी दे दिया।
उसने किशोरी की तरफ देखा , साधारण नयन - नक्शे की लड़की थी। सूट -सलवार में थी किन्तु कुछ तो आकर्षण था उसमें, हेलो ! मैं श्याम
तुम कहां रहते हो ?
मैं बिलासपुर से हूँ , परिचय के पश्चात दोनों में धीरे-धीरे बातें होने लगीं। एक -दूसरे की तरफ आकर्षित भी हुए। न जाने कब एक महीना बीत गया ?पता ही नहीं चला। किशोरी पढ़ने में बहुत होशियार थी। अक्सर दोनों पढ़ाई की बातों पर लम्बी बहस कहो या चर्चा करते। मन ही मन किशोरी ,श्याम को चाहती थी किन्तु कहने का साहस नहीं हो रहा था। श्याम भी उसकी कुछ बातों से प्रभावित था किन्तु उससे प्रेम करता है या नहीं ,ये नहीं मालूम ! चल पा रहा था। किन्तु उन दोनों के साथ को देखकर ,उनके घरवालों को अवश्य ही ,वह जोड़ी पसंद आई। दोनों का ही ,स्नातक का आखिरी साल था। जब श्याम वापिस अपने घर जा रहा था। तब किशोरी ने उसे तोहफे के रूप में , एक डायरी दी।
घर पहुंचकर जब श्याम ने डायरी खोली -एक भीनी सी खुशबू उसके मन -मस्तिष्क को छू गयी। पहले पन्ने पर ,एक गुलाब था ,हमारी दोस्ती की यादें -अपने प्रेम और दोस्ती पर न जाने कितनी ,बातें उसमें लिखीं थीं। उन्हें पढ़कर ,श्याम भावविभोर हो उठा। किशोरी ने ,हमारे उन लम्हों को कितने अच्छे तरीके से संजोया है ,एक -एक लम्हें को स्मरण कर वह फिर से जी उठता। जब उनके विवाह की बात चली ,तो इंकार न कर सका। दोनों एक -दूसरे के हो गए ,दिन अच्छे से बीत रहे थे किन्तु जबसे श्याम ने अपना कारोबार संभाला है ,तब से उसके हाव -भाव भी बदलने लगे। अब वह किशोरी से बचने लगा। न जाने इसे क्या हो गया है ?किशोरी परेशान थी ,पता तो लगाना ही होगा। वह पढ़ी -लिखी ,होशियार लड़की थी ,जब उसने पता लगाया ,तब उसे पता चला ,ये ''जादू प्यार का नहीं ''वरन फ़रेब बाहरी चकाचोंध और बनावट का है। उसके दफ्तर में एक लड़की ,आधे वस्त्र पहनकर , अच्छे से लीपापोती करके आती है ,श्याम उसकी बनावटी सुंदरता में खो रहा है। किशोरी ठहरी ,साधारण उसे बनावटी ज़िंदगी कतई पसंद नहीं थी। उसे इस बात का दुःख हुआ ,मेरा प्रेम ,श्याम को बांधकर न रख सका किन्तु श्याम के प्रेम के लिए मैं अपने को बदल दूंगी।
आज पापा ने श्याम को बताया ,कि हमारे दफ्तर में ,एक नई लड़की आई है ,जरा उससे मिलकर ठीक से बात कर लेना। उस दिन जब श्याम अपने दफ्तर में आया ,तो उसकी नजरें उस नई लड़की को तलाश रहीं थीं। उसने अपनी सेक्रेटरी से कहा -उस नई लड़की को भेजो !
मे आई कम इन सर !
यस प्लीज ,अपनी फाइल से ध्यान हटाकर श्याम बोला ,जब उसने उस लड़की को देखा तो देखता ही रह गया। स्लीवलेस ,कपड़ों में आधुनिकता का जामा पहने ,किशोरी उसके सामने थी। तुम..... आश्चर्य से बोला।
हाँ ,मेरा प्यार तो तुम्हें बांध न सका ,तो सोचा ,ये बनावटी ,दिखावटी जीवन शायद तुम्हें पसंद आये।
ये तुम क्या कह रही हो ?नजरें चुराते हुए श्याम बोला।
श्याम मैं ,दूध पीती बच्ची नहीं हूँ। पढ़ी -लिखी हूँ ,किन्तु सादगी से जीवन जीना पसंद करती हूँ। आजकल अक्सर आपको प्यार नहीं ,ऐसा जीवन पसंद आ रहा है। तभी अपनी कुर्सी से खड़ी होकर कहती है ,और उसके करीब आकर ,उससे कहती है -ये तुम्हारे' प्यार का जादू' ही तो है ,जो मैं इतनी बदल गयी लो !तुम्हारी चाहत के रंग में रंग गयी। मेरा वो सीधा -सच्चा प्यार तुम्हें बांध न सका ,तो ये दिखावटी रूप अपनाया। आजकल मेरा श्याम बाहरी साज -सज्जा ,अर्धनग्न वस्त्रों की भड़कीली दुनिया में खोया है। क्या तुम जानते हो ?'राधा 'का दूसरा नाम 'किशोरी 'भी है। नाम कोई भी हो ,किन्तु रहेगी अपने श्याम की ही। जानते हैं ,एक बार राधा ने श्याम को अपने रंग में रंगना चाहा किन्तु रंग नहीं पाई ,किन्तु श्याम के रंग में रंग गयी। मैंने भी वही किया।
श्याम को अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला -मैं गलत था ,मैं थोड़ा बहक गया था। ये कलयुग है ,राधे !इसका असर आ गया था। तुम जैसी भी हो ,जो भी हो मुझे हर रूप में पसंद हो। राधे ,प्रेम से अपने श्याम को पुकारे और वो न आये ,ऐसा हो ही नहीं सकता। कहकर किशोरी को नजरभर देखा और अपनी बाजुओं में भर लिया।