बिट्टो ! हां ,यही तो नाम है , उसका...... उसका भी मन करता था कि वह खेल -खिलौनों से खेले , किंतु उसकी मां के पास तो इतने पैसे ही नहीं थे कि वह उसको खिलौने दिलवा सके। एक दिन तो बिट्टो जिद करके ही बैठ गई , मुझे एक गुड़िया चाहिए तो चाहिए। बेचारी मां चंपा, घर-घर बर्तन मांजने जाती थी , तब जाकर घर का खर्च चलाती थी, ऐसे में महंगी गुड़िया कहां से लाये ?
एक दिन रास्ते में उसे एक छोटा कपड़ा पड़ा दिखलाई दिया उसमें कुछ बंधा था। उसने जो सामान प्रयोग में आ सकता था वो सामान लिया और जो उसे व्यर्थ लगा उसे फ़ेंक दिया। उसने उस कपड़े को भी अपने पास रख लिया। कुछ सामान लाकर उस कपड़े को लेकर वह घर आ गयी। घर आकर आकर चंपा ने ,उस कपड़े से एक गुड़िया बना डाली। वह यह नहीं जानती थी, कि वह कपड़ा, कोई मामूली कपड़ा नहीं था।गुड़िया हाथ से बनी थी इसीलिए देखने में वह गुड़िया ज्यादा सुंदर तो नहीं लग रही थी किंतु बेटी के मन को बहलाने के लिए , काफ़ी थी।
बेटी ने उस गुड़िया को देखा, थोड़ा मुंह तो बनाया किंतु फिर उसके संग खेलने लगी, उससे बातें करने लगी, उसके साथ रहकर,उसे अपने सपने बताती। उससे प्यारी-प्यारी ,मीठी- मीठी बातें करती। यह देखकर उसकी मां संतुष्ट हो गई कि मेरी बेटी अब इस गुड़िया के खेल में लगी रहती है। किंतु एक दिन उसने अपनी बेटी से जानना चाहा-तुम इससे इतनी बातें करती हो ,क्या यह तुम्हें जवाब देती है ?
हां यह मुझसे बातें करती है और मेरा कहा भी मानती है, बिट्टो ने जवाब दिया। उसका बचपना समझ कर चंपा ने ध्यान नहीं दिया। कि एक गुड़िया कैसे बात कर सकती है ?तब एक दिन, बिटटो ने अपनी मां से कहा -देखो ,मम्मी !मेरी गुड़िया की टाँगे , थोड़ी खराब हो गई है, इसे ठीक कर दीजिए। यह बीमार भी हो गई है किंतु किंतु चंपा ने समय अभाव के कारण ,उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।
सच में ही, ऐसा लग रहा था जैसे वह गुड़िया बीमार है किन्तु चंपा ने महसूस किया उसकी खुद की बेटी कमज़ोर नजर आ रही है।उसने बिट्टो से पूछा -क्या तुम्हें कुछ हुआ है ?
नहीं ,मुझे कुछ नहीं हुआ ,बस आप मेरी गुड़िया ठीक कर दो !
तब एक दिन चंपा सुई -धागा लेकर बैठी और उस गुड़िया को सिलने लगी, उसे इस तरह कार्य करते देखकर बिट्टो बोली -मेरी गुड़िया को दर्द होगा।
चम्पा ने अपनी बेटी को समझाया -यह गुड़िया कपड़े की है, इसे दर्द नहीं होता।
नहीं, मम्मी! इसे दर्द होता है, बिट्टो ने जवाब दिया।
चम्पा ने जैसे ही, उस गुड़िया को सिलना आरंभ किया, उसे ऐसा लगा ,जैसे वास्तव में कोई कराह रहा है।
देखा, मैं कह रही थी न, इसको दर्द होता है , देखो !उसके खून भी निकलने लगा बिट्टो ने उस स्थान को दिखाया।
चंपा यह देखकर बुरी तरह से डर गई, और उसने गुड़िया को दूर फेंक दिया। उसके दूर फेंकते ही ,गुड़िया के सिर से खून बहने लगा। यह क्या हो रहा है ?कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
मम्मी मैंने कहा था न...... कि इसको डॉक्टर के दिखा दो ! किंतु आप मेरा कहना मानती ही नहीं हैं , मेरी गुड़िया को, चोट लगी है। वह गुड़िया के करीब गई, किंतु चंपा बुरी तरह डर गई थी कि एक कपड़े की गड़िया से कैसे रक्त बह सकता है ? उसने अपनी बिट्टो को उसके करीब नहीं जाने दिया।
बिट्टो अपनी मां से कहती है -मां !मुझे उसके क़रीब जाने दो ! वरना वह नाराज हो जाएगी, मेरी दोस्त बीमार है, मुझे उसकी पट्टी करने दो !
नहीं ,वह कोई मामूली गुड़िया नहीं है। देखा नहीं, कितनी डरावनी लग रही है ?
वह बीमारी के कारण ऐसी लग रही है , कहते हुए बिट्टो जैसे ही ,उस गुड़िया के करीब पहुंची वह गुड़िया से लिपट गई।
तभी चंपा ने देखा, कि वह गुड़िया धीरे-धीरे उसकी बेटी का खून चूस रही थी, वह जोर से चीखी , बिट्टो इसे फेंक दे , यह बहुत खतरनाक है।अब उसे अपनी बेटी के कमजोर होने का पता चला।
नहीं, यह मेरी दोस्त है, यह मुझसे बातें करती है , तब उसने अपनी उंगली अपनी मां को दिखाई, जिससे वह गुड़िया प्रतिदिन बिट्टो की उंगली से थोड़ा-थोड़ा रक्त चुसती रहती थी। अब चंपा समझ गई, मैंने अपनी बेटी को यह गुडिया देकर ,बहुत बड़ी गलती कर दी है । वह फौरन बिट्टो करीब गई और चम्पा ने, उस गुड़िया को बिट्टो के हाथों से छीनकर उछालकर फेंका।
उसके फेंकते ही गुड़िया हंसने लगी। वह गुड़िया पहले से ही सुंदर नहीं थी किंतु अब जगह-जगह से कट- फट गई थी और गंदी भी हो गई थी,तभी उसकी आँखें चमकने लगीं , जिसके कारण बहुत ही डरावनी लग रही थी।
तू कौन है ?तू कोई कपड़े की गुड़िया नहीं है , तू किसकी आत्मा है और मेरी बेटी के पीछे क्यों पड़ी है ?चम्पा ने उस गुड़िया से पूछा।
मैं तेरी बेटी को कभी छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। जाऊंगी नहीं जाऊंगा, तभी एक मर्दाना आवाज उस गुड़िया के अंदर से गूंजी। जिस कपड़े को तू उठाकर लाई थी, उस कपड़े में मेरी आत्मा बंधी थी ,जो मैं तेरी गुड़िया के रूप में आ गया। मैं तेरी बेटी का थोड़ा-थोड़ा खून पीकर जिंदा रहूंगा।
मैं और मेरी बेटी ने तेरा क्या बिगाड़ा है ?चंपा ने उससे पूछा।
कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ता है , वह तो तेरी बेटी के लाड- प्यार के कारण,अब तक मैं इसके साथ रह रहा था।
तब तूने उसके लाड -प्यार का इस तरह लाभ उठाया , हां ,मुझे जिंदगी में कभी इतना प्यार नहीं मिला, इसकी भोली बातें ,इसकी प्यारी बातें, मुझे अच्छी लगती हैं। तू तो दुष्ट है, तूने इसके भोलेपन का लाभ उठाया है तुझे तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी चंपा ने उसे बद्दुआ दी।
नहीं, ऐसा मत कह, मैं तो वैसे ही भटक रहा हूं, मेरे अपनों ने मुझे धोखा दिया। मुझे धोखे से मरवा दिया और मेरी आत्मा को इस कपड़े में बांध दिया था।
तू क्या कर रहा है ,तू भी तो वही कर रहा है, तू भी तो प्यार के बदले धोखा ही दे रहा है। तेरे अपनों ने तुझे धोखा दिया किंतु जिन्होंने तुझे अपनाया तूने ,उन्हें ही धोखा दिया। कम से कम प्यार के बदले प्यार तो कर ता, चंपा दृढ़ता से बोली। तू क्या समझता है ? मैं अपनी बच्ची को, तेरा भोजन बनने दूंगी , मैं तुझे काट कर फेंक दूंगी कहते हुए ,वह कैंची लेने चली गई वह जोर-जोर से हंसने लगा और हवा में तैर गया। अपनी बेटी की जान का सवाल था इसीलिए चंपा में न जाने कहां से ताकत आ गई ? तब वह मिट्टी का तेल लेकर आई और उछालकर उसके ऊपर फेंक दिया। बोली -तेरी हमसे कोई दुश्मनी नहीं है, इसीलिए यदि तू चाहता है , कि तेरा हम कुछ अहित न करें ,चुपचाप यहां से चला जा और मेरी बेटी का पीछा छोड़ दे , वरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।
तू क्या कर लेगी ? तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती , मैं इस घर को और तेरी बेटी को छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा।
तेरी मुक्ति का समय आ गया है, तुझे जाना ही होगा कहते हुए चंपा ने माचिस की तीली जलाकर उसकी और उछाल दी। उस गुड़िया में आग लग गयी और साथ ही उस प्रेत को भी जलन का एहसास हुआ वो जोर से चिल्लाया -मैं तुम दोनों को नहीं छोडूंगा।
तब चम्पा बोली -अपने मन को शांत कर.... और इस योनि से अपने को मुक्त कर इस कपड़े के जल जाने पर तू भी इससे मुक्त हो जायेगा। कहते हुए ,उसने अपने घर के मंदिर में रखा हुआ ,गंगाजल उस पर छिड़का जिससे वो चीखने लगा। ये सब हालत देखते हुए ,बिट्टो ड़र गयी ,चम्पा ने उसे समझाया -ये एक ''डरावनी गुड़िया'' थी जिसका किस्सा अब समाप्त हो गया।