🌹रंग बिरंगे दरवाज़ो से सजी
बड़ी ख़ूबसूरत और हसीन
कोठी थी उसकी मगर.....!
🌹फिर भी नज़र ढूंढती थी ,
उसकी किसी अपने को,
इस क़दर......!
🌹हर तरफ उदासी और सन्नाटा था,
फैला हुआ खुशियों का लगा रहता था
जिसमें मेला हर तरफ......!
🌹बनाया था जब यह हसीन,
सपनों का महल, सोचा था चहल पहल
अपनों की होगी इसमें हर तरफ....!
🌹बड़ी सी किचन से उठती हुई पकवान
की ख़ुशबू, महकेगी ऐसे खींच लाएगी
सबको अपनी तरफ....!
🌹पंख निकलते नहीं तब तक साथ हैं
बच्चे , उड़ने के का़बिल हो जाएं तो ,
रुकते कहां है घर पर........।
🌹फिर से जागेंगी उमंगे,चहक उठेगी यह
हवेली उनकी, बच्चे मिलने आएंगे जब
उनसे घर पर .....!
🌹बड़ी सी हवेली में बैठे हुए तन्हा,
याद करते हैं उनको और ताकते हैं
घर के रंग बिरंगे दरवाजे.....!
🌹 यहां कब होता है वह, जो
सोचता है कोई, ये दौर ही ऐसा है
यहां होता है यही....!
स्वरचित रचना सय्यदा----✍️
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