🌹 जाड़े की सर्द रात थी
किसी अनजान शहर में पहाड़ियों से
घिरा मार्ग था,और था ख़ौफनाक अंधेरा।
भूल गए थे रास्ता जंगल घनेरा।
🌹 रह-रह के चमकती थी बिजली
और तूफान का अंदेशा।नींद के
आगोश में दिल चाहता था बसेरा
मंज़िल तक पहुंचना भी तो
ख़तरों से भरा था ।
🌹जानवरो कीआवाजे़ थीं और
हर तरफ सन्नाटा , पेड़ का साया था
और ग़ज़ब का अंधेरा, याद है आज भी
जंगल की उस रात का वो खौ़फनाक
घनघोर अंधेरा।
स्वरचित रचना सय्यदा----✒️
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