😟करनी हैं बातें तुझसे मुझे हज़ार ,
क्यों छीना है तुमने मुझसे ,
मेरे जीने का अधिकार ,
मेरे जीने का अधिकार ।
😟दया तुम्हें तनिक नहीं आई,
नन्ही सी जान की हत्या कराई,
क्या बीत रही होगी मुझ पर,
तनिक न सोचा माँ ,
😟मचल रही थी एक कली,
खिलने को तेरे अंगना,
अरमानो में मेरे ,
क्यूँ, तूने आग लगाई;
नन्ही सी जान की हत्या कराई।
😟क्या था ऐसा जो कन्या तेरी
कर नहीं पाती ,
तू चाहती तो मैं आकाश से
तारे तोड़ के लाती,
😟पुत्र की चाह ने तुझे
इतना गिरा दिया,
बेटी को अपनी तूने
ख़ुद ही मरवा दिया ।
😟हत्यारिन बनने से अच्छा था,
तुम भरतीं ये हुंकार,
बेटी को मैं जन्मूँगी ,
यातनाएँ दो,चाहे मुझे हज़ार ,
😟थोड़ी हिम्मत उस रोज़ अगर ,
तुमने दिखाई होती ;
टुकड़े- टुकड़े होने से ,
शायद मैं बच जाती,
😟मिल जाता मुझको मेरे ,
जीने का अधिकार ।
कर देती आकर दुनिया में मैं,
तुम्हारे स्वप्न सभी साकार ,
तुम्हारे स्वप्न सभी साकार ।
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😟सय्यदा ख़ातून (स्व रचित रचना )