मजबूर बहुत मजबूर हूं मैं ,
भूखा, प्यासा, बेबस,
अपनों से दूर हूं मैं
मजबूर बहुत
मजबूर हूं मैं........!
पत्नी बच्चे साथ नहीं हैं,
मां बाप भी छोड़कर आया हूं,
दो वक़्त रोटी की खा़तिर ,
शहर कमाने आया हूं।
मजबूर बहुत.......!
कल तक ख़ुद पर गर्व था मुझको,
मैं भी कुछ बन जाऊंगा ,
राज कराऊंगा, मां बाप को,
परिवार संग मौज मनाऊंगा
मजबूर बहुत........!
महामारी के इस दंगल में,
टूटे सपने टूटी आशा,
हताश, निराश, ख़ुद पर,
शर्मिंदा होता हूं मजबूर बहुत
मजबूर हूं मैं..........!
नज़रें नीची हाथ पसारे,
फुटपाथ पर बैठा रोता हूं,
भूखा प्यासा बेबस ,
अपनों से दूर हूं मैं ,मजबूर
बहुत, मजबूर हूं.......!
स्वरचित रचना सय्यदा----✍️
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