एक तरफ़ा पत्रकारिता के पोषक और जनक आज न जाने क्यों सकते में है. ख़बरें जो छापा नहीं छुपाया था, क्यों उस सच के छपने से शर्मिंदा है बदले में कभी पुरुष्कार तो कभी सम्मान तो कभी गद्दी का भी तो नजराना था?
वक़्त वक़्त की बात है कल हमारा था, आज किसी और का है, कल किसी और का होगा ये वक़्त का पहिया कब और कहाँ रुका है, निराश होने की ज़रुरत अगर किसी को है तो उस वक़्त को है जो कभी किसीका तो कभी किसीका को हो जाता है?