बागों में बहार था जब देश में देश को लूटने का व्यापार था? लूट में हिस्सा था तो सवाल भी शर्मिंदा था? हिस्सा के निवाले पे लगाम से सवाल भी बेलगाम है, सवाल तो आखिर सवाल है क्या हम भी पूछ सकते है?
शुरुआत कहाँ से करें आज़ादी के बाद से या फिर जब से पत्रकारिता के व्यापार के माध्यम से लोकतंत्र में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को बीच सड़क पे नंगा होते हुए देखा तब से? शुरुआत कहीं से भी कीजिये सवाल तो बनता है?
सवाल आपके है तो सवालों पे सवाल कुछ हमारे भी है? विचाधारा की लड़ाई में उलझते सवाल सुलझते नहीं है कोशिश कर के देख ले सवाल वही खड़े मिलेंगे?
पत्रकारिता के माध्यम से वोट बैंक लामबंध किये जाते रहें है, एक ही खबर के दो निष्कर्ष निकाल कर?
सकारात्मक पहलु और नकारात्मक पहलु पे पत्रकारिता तबज्जो किसे देना चाहती/चाहेगी है?
देश को आज़ाद हुए ६ दशक से भी अधिक हो गए, मगर गुलामी की दौर वाली पत्रकारिता आज भी जिन्दा है वजह?
एक राजनैतिक परिवार के लिए पत्रकारिता कब तक जिसे लोकतंत्र और सेना में आस्था कतई नहीं है, घोड़े और गधे की गुलामी पत्रकारिता से जुड़े सज्जन कब तक करेंगे?
एक अदना सा देश हमें सालों झकझोरता रहा, क्यों सवाल नहीं पूछे गए की सेना को आखिर देश की रक्षा के लिए रखा है या उन्हें मार का वोट बटोरने के लिए?
देश की जनता मत देकर विजयी बनाएगी या पडोसी देश की जनता के सवाल पे पत्रकार महोदय के सवाल भी शर्मिंदा हो गए थे?
जब देश के प्रधानमंत्री को देहातो औरत कहा गया था तब भी तो आपने समझौता कर लिया था अपने स्वाभिमान से, तब सवाल पूछने का हक़ किस हक़ से और किससे मांग रहें है?
खैर छोड़िये, बागों में बहार है : हा है.
`````````````` कलियों पे निखार है : हा है. ``````````````````
क्या सवालों पे लगाम है : ना ना ना
साथ ही सुनिये ये खूबसूरत नगमा बागों में बहार है: