चर्चा भी उसीकी होती है जो कामयाबी की मंजिल तक पहुँचने का मादा रखता है और विरोध भी उसीका होता है जो कामयाब होता है. तब क्या देश यह मान ले की नोटबंदी ने अपना सफर तय कर लिया है?
कहना जल्दवाजी होगा मगर देश इसका आंकलन तो कर ही सकता है?
देश में गरीब पहले भी थे और आज भी है सिर्फ आंकड़े बदले है दशा और दिशा तो जैसे पहले थी आज भी वही है, कोंग्रेस के दौर से गरीबी ख़त्म हो रही थी जो आजतक ख़त्म नहीं हुई?
नोटबंदी को सफल मानने का पैमाना क्या होगा?
१.भिखारी उद्योग (बच्चों का अपहरण) जिसे माफिया चलाते है ख़त्म हो जाये और इसके चंगुल में फंसे लोग मुख्यधारा में आ जाये!
२.आतंक का उद्योग बंद हो जाये जिसे राजनीती अपने फायदे के लिए देश के निर्दोष जनता के साथ साथ सैनिकों को भी मरवाने से परहेज नहीं करती थी?
३.नक्सल और अपहरण उद्योग, कालेधन और इससे जुडी समस्या जुआ, शराबखोरी छेड़छाड़ और दादागिरी अनैतिक कमाई के दम पर?
४.वेश्या उद्योग के लिए बच्चीयों अपहरण?
५.जाली नोट जो हमारे अर्थव्यवस्था को खोखला कर रही थी?
६.सत्ता से पैसा और पैसा से सत्ता का रोग, जिसके चलते देश हर में हो रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता में कमी और दुर्घटना के माध्यम से जानमाल का नुकसान?
७.कर की चोरी और बढ़ता क़र्ज़, स्वस्थ सेवाएं चरमराती हुई, बुनियादी सुविधाओं में कमी जनता की परेशानी और नेताओ की फ़ौज की मौज? ८.दलाली एक ऐसा रोग है जो समाज को खोखला कर रहा है और बिना कर दिए पैसा कमा रही है?
९.न्यायिक व्यवस्था में घूस, पैसा के दम पर इंसाफ जो गरीबों का हक़ छीन रही है?
१०.गैरसरकारी शैक्षिक संसथान और प्राइवेट डॉक्टर पे लगाम?