इसे देश का विडम्बना कहिये या फिर कुछ और मगर हकीकत यही है की देश लोकतान्त्रिक होते हुए भी, देश की जनता नेताओं के हाथों गुलाम है और घरों में कैद है?
लोकतान्त्रिक कैद और कैदों से जरा हट के है:-
भर्ष्टाचार मुक्ति के नाम पे वोट : प्रदुषण के नाम पे कैद?
सम विषम के नाम पे कैद?
धर्मनिरपेक्षता के नाम पे वोट:- अपहरण उद्योग के नाम पे कैद?
गुंडागर्दी के नाम पे कैद?
रंगदारी टैक्स के नाम पे कैद?
सुरक्षा के नाम पे बलात्कार महिलाये घरों पे कैद?
धार्मिक भेदभाव के नाम पे कैद?
अच्छे दिन के नाम पे वोट:- सीमा अशांत के नाम पे कैद?
आंतरिक सुरक्षा के नाम पे कैद?
समाजवाद के नाम पे वोट:- अथाह लूट पे जनता के हाथ कैद?
गुंडागर्दी के नाम पे घरों में कैद?
सांप्रदायिक तनाव पे घरों में कैद?
वामपंथी विचारधारा के नाम पे वोट:- लाल सलाम के झंडे तले देश वयापि बंद पे घरो में कैद?
उद्योग धंधे पे तालों से काम करने वाले हाथ कैद?
उद्योगपति से उगाही के नाम पर मजदूर कैद?
देश का परिकल्पना बेईमानी के नाम पे कैद?
धार्मिक आस्था के नाम पे वोट:- एक ने वोट दिया दूसरा को कैद नसीब हुआ?
नशे के नाम पे जो कैद मिली जिंदगी नरक कर गई?
इन कैद के जंजीरों से मुक्ति कब मिलेगी तय करना जनता का काम है, बाँट कर वोट लेना नेताओं का काम है?