टेप हो रहें है या नहीं ये तो जाँच का विषय है, क्या ये पुख्ता जानकारी है इस पर भी सवालिया निशान है?
बात करते हुआ सुने गए थे दो जज, बात करते हुए सुने गए थे दो राजनेता, बात करते सुने गए थे दो पुलिस वाले, बात करते हुए सुने गए थे दो वकील, इनके द्वारा की गई बातों की आवाजे किस तक कैसे पहुंची कोई पुख्ता जानकारी नहीं?
सुना है सुर्ख़ियों में जिन्दा रहने के लिए इल्जाम लगाया जा रहा है, सुना आगामी चुनाव के मद्देनजर विरोध का लहार बनाया जा रहा है, सुना है अपनी नाकामी को छिपाने के लिए विरोध किया जा रहा है?
सुना है लोकपाल लागु किया जा रहा है, सुना है लोकायुक्त नियुक्त किये जा रहें है, सुना है चुनाव के लिए लोक कल्याण के लिए आवंटित राशि को खर्च किया जा रहा है, जिनके खिलाफ इल्जाम थे उनपर मुकदमा दर्ज किया जा रहा है?
सुना था १०० दिन में गरीबो दूर कर दी जाएगी जब हमारी सरकार आएगी तब, महिलाओं को सुरक्षा दी जाएगी जब हमारी सरकार आएगी तब, सुना है लोगो को रोजगार दी जाएगी जब हमारी सरकार आएगी तब, भर्ष्टाचार जड़ से ख़त्म हो जायेगा जब हमारी सरकार आएगी तब?
कितनी सरकारें आई और चली गई अगर नहीं बदले है तो देश के हालात, देश की व्यवस्था? आखिर न्यायपालिका किस काम की है जब जज के ही फोन टेप ही रहें है या नहीं? भर्ष्टाचार में कंठ तक डूबे देश की न्यायपालिका को ज़रुरत है बदलाव की जो देश के अंदर गुनाहों को बढ़ावा दे कर कानूनी तौर पर वकीलों के माध्यम से पैसा की लूट की, एक ऐसी उद्योग निर्माण किया है जिस पर काबू पाए बिना, इंसाफ की उम्मीद इस देश में बेमानी है?
देश ने सुना बहूत कुछ है पर देश के लिए किया कितना है, नहीं सुनी तो बस इतना सी बात?