एक नई परिभाषा के साथ नये परिवेश में अलग से एक आयोग की व्यवस्था की मांग की जा रही है, जिसमे सुरक्षा वलों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार और अत्याचार की सुनवाई हो सके?
वैसे सुनने में तो अजीब लग रहा है मगर एक आयोग (सुरक्षा बल मानवाधिकार आयोग) होनी चाहिए जिसमे देश के सुरक्षा बल या फिर उनके रिश्तेदार न्याय की गुहार लगा सके? देश की जनता के बीच से ही चुने जाते है, उनका भी कोई न कोई अधिकार होना चाहिए, और उस अधिकार के लिए एक आधार भी तो चाहिए "सुरक्षा बल मानवाधिकार आयोग".
अगर सेवारत सैनिको का मत भी मतदान के माध्यम से चुनाव का हिस्सा बने तो मैदान में कई राजनैतिक खिलाडी इस तरह के आयोग का समर्थन करते हुए ज़रूर दिख जायेंगे?
चलिए, खैर छोड़िये मानव है तो सभी के कुछ न कुछ अधिकार होंगे, वोट बैंक के चश्मे से सबकुछ धुंधला ही नजर आता है साफ साफ देखने के लिए कहीं चश्मे को बदलने की ज़रुरत तो नहीं है?