देश की जनता चुनेगी, जनता के प्रतिनिधि (नेता) चुने जाएंगे मगर उनकी जवाबदेही देश और जनता के प्रति नहीं एक परिवार के प्रति होगी? लोकतंत्र में ऐसा मजाक क्या देश को स्वीकार होगा?
देश को स्वीकार हो या न हो, मगर अब तो वे जनता के भी पसंदीदा पार्टी नहीं रहे, और अपनी खोई राजनैतिक ज़मीन की तलाश में तो अब उस पार्टी को देश की नई नवेली पार्टी के खिलाफ तारीख २८ मई को धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है?
इस प्रतिज्ञापत्र की अहमियत देश में क्या है और इसका राजनैतिक वजन कितना है क्योंकि सवाल अब साख का है, जो गर्त में जा रहा है?
किसी हस्ती को निशाने पे लेके या किसी के नाम पे शौचालय बना कर शोहरत तो हासिल नहीं होगी, मगर ह रही सही कसर देश की जनता पूरी कर देगी? क्योंकि जिनसे प्रतिज्ञापत्र पर करारनामा भरवाया जा रहा है वफादारी का, लोकतंत्र में कहाँ तक जायज है!