३६ लाख से ६५ लाख तक के आकडें की कहानी और उसके चर्चे अख़बारों की सुर्खियां भी है और इसका अफ़सोस भी की देश की जनता की गाढ़ी कमाई पर तकनीक का सर्जिकल स्ट्राइक हो गया है?
अपुष्ट ख़बरों की माने तो इसमें हाथ देशी ही नहीं नहीं वल्की विदेशी हैकरों का भी है जो आपके महत्वपूर्ण जानकारियों पे डाका डाल रहें है? बैंकों की मिलीभगत से भी इंकार नहीं है मगर सूचनाक्रांति के उत्तम साधन वगैर महत्वपूर्ण सुरक्षा नियम और मानकों में कमी पे सर्जिकल स्ट्राइक का गहरा असर तो हो ही गया?
क्या यह संभव हो सकता है की आपके फ़ोन से आपका डाटा चाइना तक पहुँच रही हो या फिर गूगल के Gmail जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है, उसपर हमारा भरोसा कितना सुरक्षित है?
तकनीक हमारी सहुलिया के लिए है मगर उसके इस्तेमाल में हमारी समझदारी का जिम्मा कितना तकनीकी है वो तब चलता है जब हम लूट चुके होते है?
२१वी सदी में ज़रा संभल के तकनीक के इस्तेमाल में हमारी तकनिकी खामिया कहीं हमारी बर्बादी का कारण न बन जाये?