#परिवर्तन
राजनैतिक परिवार अगर है तो अगली पीढ़ी भी इसी पेशा को अपना पसंद करेगी कुछ अपवाद ज़रूर है, मगर हिंदुस्तान के राजनैतिक पृष्ठभूमि में सोलह आने सच है!
पढ़े लिखे जमात के मुंह पे झन्नाटेदार तमाचा तब लगता है जब एक अनपढ़ राजनैतिक पृष्ठभूमि वाली परिवार की अगली पीढ़ी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या फिर मंत्री बनकर आप पे राज करने लगता है?
खैर छोड़िये इसे देश की विडंवना कह लीजिये या फिर देश की जनता का टुकड़ों में बंटवारा चाहे खैरात पे जीने की ललक, राजनीती नहीं बदलेगी और ना ही ये तस्वीर भर मान लेने से क्या ज़रूरतें पूरी हो जाएगी? अगर पूरी हो जाती तो आज भी वही मुद्दे बिजली, पानी सड़क घोषणा पत्र की पंक्तियाँ नहीं होती और ना ही आरक्षण वोट बैंक और क़र्ज़ माफ़ी सत्ता की सीढ़ी होती?
भर्ष्टाचार एक मुद्दा है जो आज़ादी के बाद से ही राजनीती का हिस्सा रहा है और रहेगा क्योंकि इसीसे राजनैतिक दुकान जो चलती है? दुकान का बंद होना मतलब वोट के खरीददार और ग्राहक (वोट बैंक) का जीवन स्तर में सुधार की कामना या बदलने की इच्छाशक्ति कोई भी राज्नीत्तिक दुकान चलाने वाला नहीं रखते है?
तमाचा झेलते रहिये, दुकान चलाते रहिये मगर अपडेट ज़रूर रहिये ताकी कोई बैकडोर से एंट्री न ले ले?