सभी एक खास वर्ग के समर्थक गधे और मुर्ख होते है, इसका सीधा सीधा सम्बन्ध क्या देश की जनता से है, या फिर किसी और से? इसे देश की जनता के साथ साथ देश के उन हुकुमरानों को भी समझना पड़ेगा की हम क्या बोल रहें है?
देश लोकतान्त्रिक है अभिव्यक्ति की आज़ादी भी है, जनता बोल नहीं, लोक मिडिया पे लिख भी रही है. नेतागण बोल/लिख रहें है और मुख्यधारा के अख़बारों की सुर्खियां भी बन रहें है! आतंकवाद नासूर बना, नक्सलवाद नासूर बना, आरक्षण भी एक नासूर की तरह ही है, जात पात और धर्म की राजनीती भी देश के लिए एक नासूर ही है?
देश के बंटवारे का डंक, आज डंका बजा रहा है, कल को समाज के बंटवारा का नासूर भी चुभेगा? खैरात से खोखला, आरक्षण से कौशल, उद्योग से परहेज, नतीजा काम से महरूम हाथ कहीं कल के लिए कलंक न बन जाये?
राजनीती में सत्ता को आपका वोट चाहिए, सरकार बनाने के लिए ५१%, बंटवारा हुआ तो थोड़ा कम से भी चलेगा, टुकड़ो में बंटे तो और कम में भी क़ाम चल जायेगा और बन्दर बाँट की रश्म अदाएगी की गई तो देश के अंदर एक समाज के वोट बैंक से ही सत्ता का गलियारा रोशन हो उठता है?
राजनैतिक बयानवाजी के आधार पर देश का बंटता और बिखरता समाज राजनैतिक सत्ता के लिए एक ऐसी कुंजी है जो EVM पर बटन दबाने से अधिक से हैसियत नहीं रखता?