शिर्षक ऊँटपटांग है मगर देश की हकीकत भी इसी में छुपी है?
हमारे देश में छाया चित्र (फिल्म), क्रिकेट और राजनीती का हमेशा से ही बोलबाला रहा है और आज भी इसमें कहीं भी कमी नहीं आई है. मगर हम आज राजनीती और सिनेमा के रुपहले परदे पर के किरदार आपस में किस तरह एक दूसरे से जुड़े हुए है यह बताने की कवायत है.
कुछ सालो पहले २००१ की एक फिल्म ने देश में तहलका मचाई थी नाम है "नायक" इस फिल्म के तीन किरदार ऐसे थे जिनका इस्तेमाल इस देश की राजनीती ने २०११ के बाद से लोक मिडिया के माध्यम से खूब हुआ?
फिल्म "नायक" ने देश की राजनीती को एक नायक भी दिया और उसी फिल्म से खलनायक की भूमिका में रहे दो किरदार की जुगलबंदी न जाने कुछ इस तरह से राजनीती और फिल्म की जुगलबंदी बन गई की देश के राजनैतिक पटल पर इस तरह छा गए की लोगों ने इसे सराहा भी?
हकीकत कड़वी होती है, रुपहले परदे का "नायक"और खलनायक की भूमिका में वो चर्चित जोड़ी आज देश की हकीकत है, मगर किरदार न जाने कैसे बदले बदले से है, रुपहले परदे का "नायक" आज देश की राजनीती में खलनायक की भूमिका में है तो खलनायक "नायक" की भूमिका में है?
हम इसे कैसे समझे साहित्य समाज का आईना है या आईना के माध्यम से साहित्य आज की हकीकत?