जब टॉपर्स को मुँह छिपाकर भागना पड़े तो फ़र्ज़ी डिग्री में क्या बुराई है? देश की राजनीती फ़र्ज़ी डिग्री के पीछे एक वक़्त कुछ समय पागल थी? उस वक़्त फ़र्ज़ी डिग्री को कहाँ पता था की उसके भी अच्छे दिन आने वाले है!
टॉपर्स के दर्द के आगे फ़र्ज़ी डिग्री का आइटम सांग अब शायद टॉपर्स को भी सुहाने लगा है की काश अगर फ़र्ज़ी को तबज्जो दे देते तो राजनीती की कुर्सी पक्की हो जाती?
यह दर्द उस प्रदेश का है जहाँ कभी BA पास दूल्हा बिकाऊ है, जैसे आइटम सांग का बोलबाला था फिर दौर तकनीक(इंजीनियरिंग) का आया और अब दौर टॉपर्स का है?
सिक्के के दो पहलु की तरह टॉपर्स का दर्द भी किसी से छुपा नहीं है, प्रदेश की राजनीती ने ही प्रदेश का ही बेडा गडक किया हुआ है?सारे देश को मजदूर मुहैयाँ कराता इस प्रदेश की राजनैतिक व्य्वस्था में लगी घून को देखें कौन सा बच्चा उबार पाता है?