क्या देश की जनता को नेताओं के वायदों से आज़ादी चाहिए? ये सवाल अख़बारों की कुछ सुर्ख़ियों की वजह से पनपी है!
१. दिल्ली के मुख्य सेवक ने कहा- हमें टैक्स दें, हम बनाएंगे स्वर्ग जैसी दिल्ली?
२. चुनावी माहौल में पंजाब हरियाणा को पानी नहीं देगा, दिल्ली के मुख्यमंत्री का गावं पानी के लिए तरस रहा है मगर पानी दिल्ली से लातूर भेजने को उतावले हो रहें थे, मगर दिल्ली के बगल में हरियाणा है?
ये कुछ सुर्खियां और सोच जनता को विवस कर रही है की एक आज़ादी नेताओं के वायदों से भी देश को चाहिए? नई राजनीती से उम्मीद इसलिए ज्यादा है क्योंकि उनके वायदे ज्यादा पुराने नहीं हुए है? पारम्पारिक नेताओं के वायदे तो लगता है अब कूड़ेदान के मोहताज हो गए है?
इतनी आज़ादी के वायदों के बीच कही से अगर यह आवाज़ उठ गई की अब तो हमें भी टैक्स से आज़ादी चाहिए तो व्य्वस्था का क्या होगा और खैरात कैसे बंटेगी?