आज़ादी के बाद से ही अगर हमारा देश भारत पड़ोसियों की गुस्ताखियों का माकूल जबाब दिया होता तो क्या हमारा पडोसी एक कामयाब मुल्क नहीं होता?
लगभग ६-७ दशकों के बाद आज के तारीख में वे इस दिशा में सोच रहें है की जो किया आजतक, क्या गलत किया? सरहद पार पड़ोस से जो बुद्धिजीवी वर्ग है उनकी आवाजों पे हम गौर करें तो क्या हमारे देश के हुक्मरान, पडोसी देश की गुस्ताखियों को सिर्फ इसीलिए नजरअंदाज किया की वे एक दिन बर्बाद हो जाये?
आज का इतिहास हमेशा कल लिखा जाता है, बंटवारा तो एक सोची समझी साजिश थी मगर उनकी गुस्ताखियों को नजर अंदाज करना भी कहीं एक साजिश हिस्सा तो नहीं थी?
खैर छोड़िये काफी वक़्त गुजर गया जो होना था सो हो गया सरहद पार के हमारे पडोसी देश के सत्ताधारी हुक्मरान जिन्होंने ६०-६५ साल राज किया उनको भी माफ़ करें और अगर संभल जाये आज से तो तरक्की के द्धार कब कहाँ किसने बंद किये है!