जो वजीर जंगलराज के क़दमों में झुक गया, घोटालों के सरदार के आगे नत्मस्तक हो गया? यानी बोतल नई है मगर महक वही पुरानी वाली शराब की?
ये है देश की राजनीती के सबसे युवा वजीर जिनको शराब से बर्बाद होते घर नजर आते है या नहीं पता नहीं? मगर आज़ादी शराबबंदी से ज़रूर चाहिए, किसलिए और किसके लिए यह सवाल आज के सन्दर्भ में इसलिए ज़रूरी हो जाते है क्योंकि देश, शहर गावं, नगर, महानगर में शराब से सेवन के बाद अपराध और बीमारी मानव समाज में घर कर चुकी है?
क्या सुशान बाबू का वजीर देश को शराब पिला कर वोट बैंक बनाएगा हो भी सकता है क्योंकि इस में देश वोट बैंक की मांग ज़बरदस्त है और सत्ता की चाबी भी वोट बैंक ही है?
वोट बैंक के माध्यम से सत्ता और और सत्ता की कुर्सी के बाद लूट की कहानी कोई नई नहीं है इस देश के लिए एक और सही मगर वजीर को राजनैतिक इस्तेमाल से अपने आप को बचाना होगा?