एक राजनैतिक खानदान जो सैनिको के खौफ के साये जीते हुए कभी सैनिको का भला नहीं चाहा आज आंसू बहा कर क्या जता रहें है?
आज़ाद हिन्द फ़ौज को मान्यता देने से भी कतरा रहें थे,OROP लागु करने को भी तैयार नहीं थे मगर राजनीती करने की तत्परता देखते ही बनते ही?
देश की जनता ने राजनैतिक दलों को दरकिनार क्यों किया इस पर मंथन ज़रूरी है, दोनों हाथों को काम चाहिए खैरात से देश न बदला है और न कभी बदलेगा, कुर्सी चाहिए तो काम कीजिये और काम दीजिये, भूखे पेट न राजनीती होगी न प्रजा मतदान में योगदान देगी?
राजनीती कीजिये की मौत न होने पाये, मौत के बाद लाश पे तो गिद्ध मंडराते है, क्या देश में राजनैतिक दलों की हैसियत एक गिद्ध से अधिक की नहीं है?