एक लम्बे अर्से तक व्यवस्था से खिलवाड़ का आदि इस देश में जब परिवर्तन की दिशा में पहले कदम से ही माहौल में गर्माहट है और यह बदलाव सिर्फ राजनैतिक नहीं सामाजिक नहीं इससे आगे की ज़रूतों की भी है?
राजनैतिक प्रतिद्वन्दता में गिरफ्तारियां दिल्ली में जहाँ आम, सहज और सरल है वहीँ समाज के दुश्मनो को पहचानने में पुलिस नाकारा साबित हो रही है मगर देश उसको स्मार्ट पुलिस का तमगा हासिल है?
लुढ़कते पड़ते दिल्ली मेट्रो की तस्वीर जब सामाजिक पत्रकारिता में संख्या की जाती है तब पता चलता है ये तो हमारा ही अधिकारी है मगर उससे पहले व्यवस्था का खिलवाड़ जारी रहता है?
सामाजिक पत्रकारिता एक ऐसा हथियार है देश को इसका इसके इस्तेमाल सही तरीके से किया जाना चाहिए, पक्ष विपक्ष के बहस के दौरान कानून की पेचीदगी का भी सहारा लिया जाता है, और इससे पार पाना देश की जनता के लिए भी एक चुनौती है?
प्राथमिक शिक्षा का देश में जहाँ अभाव है और व्यवस्था देश में एक वक़्त का खाना बच्चो को यानि देश के भविषय को सही रूप से मुहैया नहीं करा सकता उस देश में कानूनी शिक्षा के आलम का क्या कहना और कानून की पेचीदगी इतनी की गरीबों को न्याय मिलना नामुमकिन है?
ये सिर्फ देशवासियों का कहनाम नही है देश में जज रह चुके पूर्व जजों का भी यही कथन है, जिस देश के अमीर सच बोलने से और गरीब झूठ बोलने कतराते है उस देश का सामाजिक, कानूनी और राजनैतिक ढांचे आमूल चुल परिवर्तन का लम्बे समय से इंतज़ार है, इंतज़ार कंपनी की घडी का इतिहास बहुत बुरा है अतः देश को किसी दूसरी कंपनी के घडी से समय में परिवर्तन का भरोषा है?
कानून के धाराओं और शाखाओं के ज़र्रे ज़र्रे में कहीं गफलत तो नहीं है जो इंतज़ार कर रही है इसमें बदलाव नितांत आवशयक है और वह भी तुरंत प्रभाव से, क्योंकि न्याय का देर से मिलना भी अन्याय है!