लाश गिरी नहीं की टूट पड़े गिद्धों की तरह, अगर देश का यह राजनैतिक स्तर है तो देश को बदलने में अभी भी बर्षों लगेंगे? लाश न गिरे इसकी चिंता किसी भी राजनैतिक दल को नहीं है,मगर लाश पर गिद्धों की तरह ऐसे टूट पड़ते है जैसे की सारा वोट बैंक का निवाला इनके ही चोंच में ही आ जाएगी?
एक राजनैतिक नौटंकी विरोध की देश में चल रही है, क्या विरोध से व्यवस्था में परिवर्तन होगा या सत्ता में राजनैतिक पार्टी परिवर्तन होगा, यह तो भविष्य बताएगा, मगर हालात ऐसे ही रहें तो देश को रसातल में जाने से कोई रोक नहीं सकता?
देश की जनता भी क्या यही चाहती है, लाश पे राजनीती या जिससे लाश ना गिरे उसका एक पुख्ता इंतजाम? तय करना जनता को है राजनीती करना नेताओं का काम है, मगर कुछ तो छोड़ दीजिये की रुक्सत होने से पहले अपनों को कुछ पल निहार सकूं.