देश में एक के बाद एक विपक्षी दलों का देश के वजाये पड़ोस के समर्थन से क्या सरकार भी शायद यह मान बैठी है की सारी विपक्षी पार्टियां देश में नहीं देश के बाहर चुनाव लड़ने का फैसला किया है? वजह की तफतीस की तो पता चला की इस अजीब सी सरकारी ख़ामोशी का राज शायद कहीं इसी के पीछे न छिपा हो?
इतने हंगामे के बाद की ख़ामोशी कहीं तूफ़ान के आने से पहले वाली ख़ामोशी तो नहीं है, सतर्क रहना होगा? क्या सत्ता में आसीन सरकार यह मान बैठी है की विपक्ष के पड़ोस को समर्थन आगामी चुनावी के अग्निपथ में आने वाले काँटों को साफ़ करता जा रहा है?
अजीब सी सरकारी ख़ामोशी है वजह कहीं पड़ोस में तूफ़ान है तो कहीं शांति है? तूफ़ान और शांति का ऐसा जुगलबंदी पहले कभी नहीं देखा गया है, इंतजार कीजिये और सतर्क रहिये.