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#‎व्यंग‬ उट-पटांग डाक (पोस्ट) की कड़ी में प्रस्तुत है :- मायने से मतलब और मतलब से मायने का राजनैतिक पेंच?

29 अगस्त 2015

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( SECULARISM ) सेकुलरिज्म शब्द के मायने क्या है :- ""कहीं नास्तिकवाद तो नहीं?" मोटे तौर पर देखे तो धर्मनिरपेक्षता ही सबसे उचित और सटीक मायने सेकुलरिज्म का लगता है, मगर जब हम धर्मनिरपेक्षता शब्द की गहराई से विश्लेषण करते है तो पाते है की इसके मायने मतलब तो हर कोई अपने हिसाब से चाहता है और शब्द के मतलब को हर कोई अपने हिसाब/तरीके से परिभाषित करना चाहता है जो शायद इस देश की राजनीती के द्वारा राजनीती में ही सम्भव है? देश की राजनीती से देश ने पिछले ६७ सालों में बहुत कुछ देखा और सीखा है, अगर यह परिभाषा सही होती तो इस राजनैतिक के पोषक का वो हर्ष नहीं होता जो दिख रहा है, ज़रूर इसमें कहीं न कहीं कोई खोट है? तभी तो इसको दोबारा से सही रूप में प्रस्तुत करने की ज़रुरत महसूस की जा रही है और हो भी रही है? इतिहास गवाह है देश का पिछले ६७ सालों में न जाने कितने राजनेताओं ने इस शब्द के पक्ष और विपक्ष में खड़े होकर सत्ता का सौदा जनता से सत्ता हथियाने के लिए किया, तो फिर क्या हम इतिहास भूल जाये या याद रखें? चुनाव अभी बिहार में है और इस शब्द का राजनैतिक इस्तेमाल तो सत्ताधारी और विपक्ष ने बखूबी किया है तो हम कैसे मान ले की इस शब्द का सही उपयोग देश में हो रहा है? गिरगिट की तरह रंग बदलने वालों की पहचान सबसे पहले ज़रूरी है? शब्द अपने आप में कोई बुरा नहीं है इसके गलत इस्तेमाल पर रोक ज़रूरी है, लोकतान्त्रिक देश को किसी के बलबूते पे छोड़ देना कहाँ तक जायज है जनता मालिक है देश की और देश कानून के राज तहत चलना चाहिए? शब्द सेकुलरिज्म का एक मतलब और भी है नास्तिकवाद, जो इस शब्द को सही तौर पे परिभाषित करता है, मगर देश की राजनीती इससे घबराती है डरती है मगर क्यों, सही मायने में तो सच्ची धर्मनिरपेक्षता का प्रयाय तो कहीं नहीं है? क्योंकि जब तक हम अपने धर्म को मानेगे तब तक सही मायने में धर्मनिरपेक्षता को अपना नहीं सकते? और अगर हम किसी भी धर्म को अपनाते है तो धर्मनिरपेक्ष रह पाना कैसे सम्भव हो पायेगा किसी भी समुदाय के लिए यह एक स्वाभाविक मनोस्थिति है? इसीलिए नास्तिकवाद को ही अगर सही मायने में धर्मनिरपेक्ष मान लिया जाये तो क्या बुराई है इसमें किसी भी स्थापित धर्म की कोई भी रूप रेखा मौजूद नहीं है, इनसानियत पे भरोषा करता है और इंसान बने रहने की प्रेरणा देता है! राजनीती इसको किसी न किसी मोड़ पर तकनीक से जोड़ कर इस मतलब को निरश्त कर देगी और पढ़े लिखे लोगो को ये अंगूठा छाप सदा की तरह आइना दिखा देंगे? धुल तो चेहरे पर है आइना साफ करने से क्या हासिल होगा?
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व्यवस्था कहाँ है?

24 अगस्त 2015
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एक लम्बे अर्से तक व्यवस्था से खिलवाड़ का आदि इस देश में जब परिवर्तन की दिशा में पहले कदम से ही माहौल में गर्माहट है और यह बदलाव सिर्फ राजनैतिक नहीं सामाजिक नहीं इससे आगे की ज़रूतों की भी है?राजनैतिक प्रतिद्वन्दता में गिरफ्तारियां दिल्ली में जहाँ आम, सहज और सरल है वहीँ समाज के दुश्मनो को पहचानने में पु

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#‎व्यंग‬ (आरक्षण)

27 अगस्त 2015
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राजनैतिक दल के सवयंसेवक और कार्यकर्ता के लिये भी आरक्षण की मांग करता हूँ,?एक आरक्षण काफी लम्बे समय लंबित पड़ा हुआ है मगर उसको देश में किसी भी राजनैतिक दल का समर्थन प्राप्त नहीं है, निकाय से राज्यसभा तक ३३% प्रतिशत का आरक्षण कितना निराश और उदास मगर कोई उसकी सुध नहीं लेता?आरक्षण कितना आरक्षण है और कितन

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पारम्परिक जीवन वनाम शहरी जीवन शैली!

28 अगस्त 2015
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कृषि प्रधान देश की परम्परा गल्ली, मोहल्ला,क़स्बा और गांवों से ताल्लुक रखती थी/है,समय के साथ देश जब तरक्की के रस्ते पर अपना सफर आहिस्ता आहिस्ता तय किया तब यह स्वरुप भी बदला और शहरीकरण की नीव पड़ी फिर गल्ली,मोहल्ला,क़स्बा और गांवों की जीवन शैली में भी तबदीली आई और चंकाचौध की दुनिया का तानाबुना बना गया या

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क्या इस आरक्षण की मांग जायज है?

28 अगस्त 2015
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मै भी देश में भूखे रहने वालों के लिए आरक्षण की मांग करता हूँ? मांग कीजिये कहीं दुआ कबूल हो गई तो भूखे को रोटी नसीब हो जाएगी!

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#‎व्यंग‬ उट-पटांग डाक (पोस्ट) की कड़ी में प्रस्तुत है :- मायने से मतलब और मतलब से मायने का राजनैतिक पेंच?

29 अगस्त 2015
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( SECULARISM ) सेकुलरिज्म शब्द के मायने क्या है :- ""कहीं नास्तिकवाद तो नहीं?"मोटे तौर पर देखे तो धर्मनिरपेक्षता ही सबसे उचित और सटीक मायने सेकुलरिज्म का लगता है, मगर जब हम धर्मनिरपेक्षता शब्द की गहराई से विश्लेषण करते है तो पाते है की इसके मायने मतलब तो हर कोई अपने हिसाब से चाहता है और शब्द के मतलब

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ये मेरा इतिहास ये तेरा इतिहास मगर है किसका इतिहास मालूम नहीं?

3 सितम्बर 2015
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राजनैतिक रस्साकस्सी का सबसे सुखद पहलु यह है की अधकचड़े इतिहास का पुनरावृति हो जाती है, अगर विषय इतिहास पे गौर करें तो सिक्के के दो पहलु की तरह एक ही ऐतिहासिक घटना के कई पहलु है अलग अलग समाजिक और राजनैतिक दृष्टिकोण से? इतिहास की किसी भी घटना को आप उठा कर देख लीजिये उसमे विरोधाभाष है ऐसा क्यों है

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विचारधारा कहाँ और कैसे खो गई?

4 सितम्बर 2015
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बँटवारे की राजनीती बाँटते बाँटते कितनी बची हुई है?जाती प्रथा वाली राजनीती का सारथी अकेला क्यों खड़ा है?समाजवाद की राजनीती में अब परिवारवाद ही क्यों जिन्दा है?महीन राजनीती के जनक महीन चक्रव्यूह में कैसे और क्यों फंसे हुए है?स्वछ राजनीती का झंडा उठाने वाले का झंडा दागदार क्यों और कैसे हो रहा है?राष्ट्र

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इतिहास कितना जानते है हम?

7 सितम्बर 2015
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आज़ादी के लड़ाई में हिस्सा लिए बिना ही जिनको स्वंतत्र सेनानी बनने का सौभाग्य मिल गया वे बड़े ही भाग्यशाली है, मगर देश की सोच क्यों बदलती जा रही है? त्याग और वलिदान के किस्से क्यों बेमानी होते जा रहें है, और इस समझ को समझने के लिए जनता क्यों नहीं खुद को भारत रत्न की उपाधि से नवाज कर एक कोशिश क्यों नहीं

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कोर्ट के आदेश पर अयोध्या के विवादित राममंदिर की तिरपाल बदली जाएगी

22 नवम्बर 2015
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प्रदूषण घटे न घटे, सरकार के नए फैसले से दिल्ली वालों की बढ़ी 10 चिंताएं...

4 दिसम्बर 2015
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1984 सिख दंगो मे कोर्ट का आदेश, टाइटलर के खिलाफ दोबारा जांच शुरू करे CBI

4 दिसम्बर 2015
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HT लीडरशिप समिट में बोले मोदी : अब दुनिया देखेगी हिंदुस्तान की ताकत

4 दिसम्बर 2015
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फ्लैट पर फंसे दिल्ली पुलिस कमिश्नर, तो कहां बेईमानो को कब्रिस्तान लेके जाऊंगा

4 दिसम्बर 2015
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‪#‎ऊंटपटाँग‬ पोस्ट की याद में ‪#‎गठबंधन‬+महागठबंधन= महाठगबंधन

5 दिसम्बर 2015
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गठबंधन और महागठबंधन के दौर में देश की जनता भी एक गठबंधन कर ले की देश समझौते से नहीं चलेगा और न ही समझौते वाला प्रधानमंत्री देश को मंजूर होगा?जिसकी हिम्मत है वो राजनीती करें, गठबंधन और महागठबंधन करके मलाई खाने के चक्कर में देश को झांसे में न रखे?देश को कानून के तहत चलाने वाला राजनेता चाहिए कानून तोड़न

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विजय माल्या का 40 मिलियन कीमत वाला जेट हो रहा है नीलाम, खरीदेंगे आप !

5 दिसम्बर 2015
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1999 कारगिल युध्द का जवान निकला ISI का जासूस, किया गिरफ्तार

5 दिसम्बर 2015
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दबगों ने महिला को पेड़ से बांध कर पीटा, देखता रहा गांव

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दबगों ने महिला को पेड़ से बांध कर पीटा, देखता रहा गांव

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दिल्ली मे दरिंदो की नजर अब घर और सड़क से लेकर कब्र तक जा पहुंची, शव के साथ...

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दिल्ली मे दरिंदो की नजर अब घर और सड़क से लेकर कब्र तक जा पहुंची, शव के साथ...

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बोली दिल्ली की जनताः दिल्ली सरकार ने नहीं किया होमवर्क

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बोली दिल्ली की जनताः दिल्ली सरकार ने नहीं किया होमवर्क

5 दिसम्बर 2015
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लश्कर-ए-तैयबा के निशाने पर दिल्ली, दो आतंकी देश में घुसे, सुरक्षा बढाई गई

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लश्कर-ए-तैयबा के निशाने पर दिल्ली, दो आतंकी देश में घुसे, सुरक्षा बढाई गई

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चुनावों में जीत दिलाने का सीक्रेट, किताब के जरिये बताएँगे प्रशांत किशोर

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चुनावों में जीत दिलाने का सीक्रेट, किताब के जरिये बताएँगे प्रशांत किशोर

5 दिसम्बर 2015
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#‎ऊँटपटांग‬ पोस्ट की याद में ‪#‎व्यंग‬-कुंजी चुनाव जितने की

5 दिसम्बर 2015
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अब लगता है देश में जनता के भी दिन बदलने वाले है, ख़बरों की माने तो चुनाव कैसे लड़े और जीते पर एक किताब आने वाली है, और उसके लेखक कोई और नहीं देश के जाने माने चुनाव रणनीतिकार श्री प्रशांत किशोर जी होंगे!जिन्होंने २०१४ और २०१५ में एक कई राजनैतिक दलों के गठबंधन को चुनाव जितवा कर अपना लोहा मनवा लिया है!अग

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5 Points : 'एक दिन कार, एक दिन बेकार' से 'रेपमुक्त' होगी दिल्ली !

5 दिसम्बर 2015
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सुनिए वन्दे मातरम की धुन जिसे बजाकर उस्ताद ने कौमी एकता को कर दिया अमर पर उन्हें भूल गया देश

6 दिसम्बर 2015
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केजरीवाल का नया कारनामा, आप के एमएलए को बाटीं खीर, विकलांगों को दिखाया ठेंगा

6 दिसम्बर 2015
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पंजाब में आप का चुनावी खेल शुरू, केजरीवाल ने सिद्धू को दिया हाथ मिलाने का न्यौता

6 दिसम्बर 2015
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देश के सबसे बड़े अस्पताल AIIMS में हर रोज हो रही है 10 मरीजों की मौत : सरकारी रिपोर्ट

6 दिसम्बर 2015
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सुप्रीम कोर्ट के जज भी इवेन-ऑड का फ़ॉर्मूला अपनाएं तो मिलेगी प्रेरणा, शुक्रिया माय लॉर्ड

6 दिसम्बर 2015
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विशेष रिपोर्ट : सियासत का केंद्र रहे अयोध्या में अब भक्त कम सुरक्षाबल ज्यादा हैं

6 दिसम्बर 2015
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बाढ़ से ढही चेन्नई की अर्थव्यवस्था, आईटी कंपनियों को 40,200 करोड़ की भारी चपत

6 दिसम्बर 2015
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सुनिए वन्दे मातरम की धुन जिसे बजाकर उस्ताद ने कौमी एकता को कर दिया अमर पर उन्हें भूल गया देश

7 दिसम्बर 2015
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घपले में घिरे प्रणॉय रॉय : 'कारवाँ' गुज़र गया गुबार देखते रहे ..

11 दिसम्बर 2015
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इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्ली : देश के जाने माने न्यूज़ नेटवर्क NDTV  का सूरज अब डूबने के कगार पर दिख रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर मनमोहन सिंह की तरह हस्तक्षेप करें तो शायद NDTV के मालिक प्रणॉय रॉय और उनके नेटवर्क को गर्त में जाने से बचाया जा सकता है. लेकिन फैसला उस मोदी को करना है जिसके दामन

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#व्यंग

11 दिसम्बर 2015
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कल दिन भर के ख़बरों का सारांश:-कानून पैसा पीकर गाड़ी चला रहा था और न्याय को कुचल दिया?अगर सलमान बरी नहीं होते तो मेरा पैसों पर से विस्वास उठ जाता?

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गाँधी-नेहरु परिवार की चौथी पीढ़ी की आज हेराल्ड परीक्षा, रायबरेली से आये समर्थक

19 दिसम्बर 2015
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इंडिया संवाद ब्यूरोनई दिल्ली : नेशनल हेराल्ड मामले में आज सोनियां और राहुल गाँधी पटियाला हाउस कोर्ट में पेश होंगे इस मौके पर बड़ी संख्या में कांग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड पर बड़ी संख्या में कांग्रेस समर्थकों ने जुटना शुरू कर दिया है। ख़बरों के अनुसार बड़ी संख्या में गाँधी नेहरु परिवार के गढ़ राय बरेली

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इंदिरा की तर्ज पर सोनिया : हेराल्ड का कानूनी मसला बनेगा कांग्रेस का सियासी हथियार

19 दिसम्बर 2015
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नई दिल्ली : नेशनल हेराल्ड मामले में आरोपों का सामना कर रहे सोनिया और राहुल गांधी की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश होने वाले हैं। इस मामले की सुनवाई कर रहे पूर्व जज गोमती मनोचा का ट्रांसफर हो गया है और नई मजिस्ट्रेट लवलीन द्वारा मामले की सुनवाई होगी।पहले खबरें आ रही थी कि सोनिया और राहुल गांधी इस मामले

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#एक पागल की सोच #किनारे की तलाश

25 फरवरी 2016
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#BigIshratSecret क्या देश का राजनैतिक घटनाचक्र घूम गया है? ऐसा क्या हो गया देश में की कुछ दिनों से देश की लगभग हर राजनैतिक दल एक किनारे की तलाश में भटक रही है? अब क्यों उस सहारे के साथ कोई नहीं दिखना चाह रहा है, जिस पार्टी ने इस देश पर सबसे लम्बे समय तक राज किया है! मंच जो कभी उनके होने से गुलजा

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#ऊँटपटांग पोस्ट की याद में #पत्रकारिता का स्वरुप

19 मार्च 2016
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देश में पत्रकारिता हकीकत से रूबरू नहीं कराती अब इस तथ्य को प्रमाण की कोई ज़रुरत नहीं है, यह एक व्यवसाय है समाचार का माध्यम कभी हुआ करता था, अगर आज की तारीख में किसीको ऐतराज अगर है तो सिर्फ उसीको जिसके खिलाफ लिखा जा रहा है?पक्षकारों का पक्ष लेते लेते राजनीती का ये हाल हो गया है की उनको अपने कदमो पर उन

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‪#‎ऊंटपटांग‬ पोस्ट की याद में ‪#‎पानी‬ रे पानी तेरा रंग कैसा

14 अप्रैल 2016
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क्या राजनैतिक ज़मीन को बनाने में पानी सहायक हो सकती है? ये सवाल कोई यूं ही देश की जनता के दिमाग में नहीं आते है, क्योंकि पानी ही एक ऐसी द्रब्य है जिसको जिसमे मिला उसका रंग उस जैसा हो जाता है!एक काफी पुराना नगमा है, "पानी रे पानी तेरा रंग कैसा जिसमे मिलो दो उस जैसा"राजनीती में भी पानी को मिला दो पानी

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#कोना अख़बार का #आज़ादी वायदों से

24 अप्रैल 2016
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 क्या देश की जनता को नेताओं के वायदों से आज़ादी चाहिए? ये सवाल अख़बारों की कुछ सुर्ख़ियों की वजह से पनपी है!१.  दिल्ली के मुख्य सेवक ने कहा- हमें टैक्स दें, हम बनाएंगे स्वर्ग जैसी दिल्ली?२.  चुनावी माहौल में पंजाब हरियाणा को पानी नहीं देगा, दिल्ली के मुख्यमंत्री का गावं पानी के लिए तरस रहा है मगर पानी

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#ऊंटपटांग पोस्ट की याद में #वजीर

30 अप्रैल 2016
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 जो वजीर जंगलराज के क़दमों में झुक गया, घोटालों के सरदार के आगे  नत्मस्तक हो गया? यानी बोतल नई है मगर महक वही पुरानी वाली शराब की?ये है देश की राजनीती के सबसे युवा वजीर जिनको शराब से बर्बाद होते घर नजर आते है या नहीं पता नहीं? मगर आज़ादी शराबबंदी से ज़रूर चाहिए, किसलिए औ

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‪#‎लोकमिडिया‬ के मस्त अंदाज

13 मई 2016
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‪#‎वक़्त‬ का हर शे गुलामबदलते वक़्त के साथ लोकयुक्तियां भी बदल जाती है? कभी लिखा हुआ करता था, और अब कृपया हॉर्न न बजाये जगह मिलने पर पास दिया जायेगा?

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#ऊंटपटांग पोस्ट की याद में #वयंग_डिग्री

18 मई 2016
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मेरी डिग्री की कोई कीमत नहीं है क्योंकि चर्चा में नहीं है! मैंने भी परीक्षा देकर (घूस देकर नहीं) वाणिज्य में स्नातक की डिग्री ली है क्या उसका कोई मोल नहीं है? असली है की फ़र्ज़ी है किसीको कोई लेना देना नहीं है,डिग्री तो है मगर चर्चा में नहीं है? घींच-घांच के मैट्रिक पास  (GGMP) यानी फेल होकर कोई दोबार

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#कोना अख़बार का #वोट बैकं का गलियारा

22 मई 2016
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सबको खुश रखना मुश्किल ही नहीं असंभव है, जुमला नहीं हकीकत है!आज़ादी के बाद सहूलियत और विरासत को बचाने के लिए जो खेल खेला गया वो खेल वोट बैंक के गलियारों से ही गुजर कर कारवां का रूप धारण किया, मगर क्या उस कारवें की ज़रुरत पूरी हुई, सवालिया निशान इसी पर है?ज़रुरत कभी भी किसी की पूरी नहीं होती, उम्र परिधि

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#ऊंटपटांग पोस्ट की याद में #प्रतिज्ञापत्र_या_गांधी_बॉन्ड

25 मई 2016
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 देश की जनता चुनेगी, जनता के प्रतिनिधि (नेता) चुने जाएंगे मगर उनकी जवाबदेही देश और जनता के  प्रति नहीं एक परिवार के प्रति होगी? लोकतंत्र में ऐसा मजाक क्या देश को स्वीकार होगा?देश को स्वीकार हो या न हो, मगर अब तो वे जनता के भी पसंदीदा पार्टी नहीं रहे, और अपनी खोई राजनैतिक ज़मीन की तलाश में तो अब उस पा

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#ऊंटपटांग पोस्ट की याद में #बंधुआ_मजदूर

30 मई 2016
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इतिहास के पन्नो में दर्ज़ बंधुआ मजदूरों पे लेख और किस्से बहुत पढ़े और सुने होंगे मगर १९७६ के आते आते सरकारी पाबन्दी के बाद इस प्रथा को बंद करना पड़ा सरकारी कागजों में! मगर या कुप्रथा आज भी जारी है परदे के पीछे?बंधुआ मजदूर यानी गुलाम, ख़रीदा हुआ इंसान जो काम करे हमारे लिए किसी और के लिए नहीं, सभ्य समाज न

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#कोना अख़बार का #टॉपर्स_का_दर्द

12 जून 2016
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जब टॉपर्स को मुँह छिपाकर भागना पड़े तो फ़र्ज़ी डिग्री में क्या बुराई है? देश की राजनीती फ़र्ज़ी डिग्री के पीछे एक वक़्त कुछ समय पागल थी? उस वक़्त फ़र्ज़ी डिग्री को कहाँ पता था की उसके भी अच्छे दिन आने वाले है!टॉपर्स के दर्द के आगे फ़र्ज़ी डिग्री का आइटम सांग अब शायद टॉपर्स को भी सुहाने लगा है की काश अगर फ़र्ज़ी

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#ऊंटपटांग पोस्ट की याद में #वयंग_टॉपर्स

12 जून 2016
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राजनैतिक गलियारों में भी टॉपर्स के लिए स्थान सुरक्षित है जिसे देश और देश की जनता अपर हाउस या राज्यसभा के नाम से जाना जाता है?  बिहार के टॉपर्स और यहाँ के टॉपर्स में भी कोई खास ज्यादा अंतर नहीं है जहाँ तक चुनने का सवाल है पढाई लिखाई हो चाहे जनता से चुनावी मुकाबले में भले ही कोई मात खा जाये मगर एक व्य

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#ऊंटपटांग पोस्ट की याद में #टीवी देखना छोड़ दे

12 जुलाई 2016
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रविश भाई आपके फरमान को किस हद तक अपनाए अगर टीवी देखना छोड़ दे तो आपके प्राइम टाइम को ९ बजे मिस करेंगे फिर दाल रोटी टीवी चैनलों का कैसे चलेगा?  चलो टीवी देखना छोड़ भी देंगे तो साधन और भी कई है सूचनाक्रांति का दौर है ज़रा संभल के? मुद्दों से ही राजनीती होती है और राजनीती ने ही इस देश का बंटाधार किया है?

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#दौर_ये_जुमला_राजनैतिक_है?

18 जुलाई 2016
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मोहब्बत और जंग में सबकुछ जायज है, ये कहावत काफी पुरानी/कितनी पुरानी है मालूम नहीं!दौर ये जुमलों  का है और वो भी रजनिैतिक जुमला अगर इसमें एक शब्द और जोड़ दिया जाये तो कैसा रहेगा!मोहब्बत, जंग और राजनीती में सबकुछ जायज है, और तीनो ही वक़्त बे वक़्त बर्तन धुलवा ही देती है?

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#कोना पत्रकारिता का #कटाक्ष

11 अगस्त 2016
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एक तरफ़ा पत्रकारिता के पोषक और जनक आज न जाने क्यों सकते में है. ख़बरें जो छापा नहीं छुपाया था, क्यों उस सच के छपने से शर्मिंदा है बदले में कभी पुरुष्कार तो कभी सम्मान  तो कभी गद्दी का भी तो नजराना था?वक़्त वक़्त की बात है कल हमारा था, आज किसी और का है, कल किसी और का होगा ये वक़्त का पहिया कब और कहाँ रुका

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#कार्टून_कार्नर

11 अगस्त 2016
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तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद?

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#कार्टून_कार्नर

27 अगस्त 2016
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 इस हकीकत से क्या किसीको इंकार है?

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#ऊंटपटांग_पोस्ट_की_याद_में

4 सितम्बर 2016
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डाटा मत खाइये चारा भी मत खाइये! देश के नेता जीप,स्टाम्प पेपर,विकलांगो की कुर्सी,हवाई जहाज,कोयला, स्पेक्ट्रम,चारा खा जाते है तो क्या जनता को डाटा खाने का भी हक़ नहीं है? आंकलन कितना सही है पता नहीं मगर यह भी सही है की डाटा जितना राजनैतिक दल के कार्यकर्ता और राजनेता खा जाते है, उतना तो शायद जनता भ

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#ऊंटपटांग_पोस्ट_की_याद_में

29 सितम्बर 2016
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ट्व्वीट पे चहक और मेहर की महक पे मेहरबान है हमारा पडोसी? देश की सबसे पुरानी और कथित तौर पे सबसे बड़ी पार्टी जब हिंदुस्तान के पडोसी से देश में चुनाव जीतने के लिए मदद मांगते हुए सामाचार माध्यम के मार्ग से जब देश में सार्वजनिक हो जाते है तब देश की नई भी इसमें कहाँ पीछे रहने वाली है? देश हित में देश

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एक सवाल मन में था सो पूछ रहा हूँ?

30 सितम्बर 2016
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जबसे होश संभाला है और ख़बरों की दुनिया से रूबरू हुआ हूँ तब से लेकर आज तक हमेशा से ही बीबीसी ने भारत के पक्ष में खबरों को तोड़ मड़ोड़ कर की पेश किया है. वैसे भी जिस अंग्रेजी हुकूमत के हम बर्षों गुलाम रहें है उसकी तरफदारी क्या देश को करनी चाहिए? क्या बराबरी का दर्ज़ा हासिल करने

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अख़बार के पन्नो से:-

4 अक्टूबर 2016
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६५ हजार लोग फेयर एंड लवली क्रीम लगा कर गोर हो गए बाकी?देश की जनता. मोदी नहीं जानते किस कौम को ललकार रहें है. भूतपूर्व क्रिकेटर पाकिस्तान. बिहार का जंगलराज अब आम आदमी की जगह पुलिस को भी मार रही है. बिहार की मिडिया. जवानों की किसने कहा था सेना में जाने को. बॉलीवुड का ए

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#ऊंटपटांग_पोस्ट_याद_में "अजीब सी ख़ामोशी"

4 अक्टूबर 2016
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देश में एक के बाद एक विपक्षी दलों का देश के वजाये पड़ोस के समर्थन से क्या सरकार भी शायद यह मान बैठी है की सारी विपक्षी पार्टियां देश में नहीं देश के बाहर चुनाव लड़ने का फैसला किया है? वजह की तफतीस की तो पता चला की इस अजीब सी सरकारी ख़ामोशी का राज शायद कहीं इसी के पीछे न छिपा हो? इतने हंगामे के बाद की

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#नजरिया

4 अक्टूबर 2016
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"वोट बैंक पहले, देश बाद में" सबूत करे वोट बैंक की डोर मजबूत? छिपाने को बहुत कुछ है, छिपाया भी गया अगर इससे पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था तो देश से छिपाया क्यों गया? क्या वोट बैंक नाराज हो जाती, सत्ता चली जाती? छिपाया तो देश से बहुत कुछ गया है इतिहास तक को पलट कर रख दिया और इसमें साथ दिया इतिहासका

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#सर्जिकल_स्ट्राइक

12 अक्टूबर 2016
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सर्जिकल स्ट्राइक का जितना असर पाकिंस्तान में नहीं हुआ उससे कई गुना कहीं अधिक असर देश में विपक्ष के वोट बैंक पे हुआ सा प्रतीत हो रहा है? बौखलाहट में जिंजर भी सामने आ गया, अब सब जिंजर तलाशने में जुटे हुए है की भाई है कहाँ,कैसे है अगर है भी तो आखिर किस पन्ने में दर्ज है. खैर छोड़िये सर्जिकल

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#बाजार

19 अक्टूबर 2016
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क्या सही में चीन का बाजार सीमट रहा है देश में, अगर जबाव हा में है तो देश के लिए इससे बड़ी ख़ुशख़बरी देश के लिए नहीं होसकती है! आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुल्क के लिए यह वरदान सिद्ध होगा क्योंकि हाथों को काम चाहिए सामान बेच कर तो दुकानदार गुजर कर लेंगे मजदूर कहाँ जायेंगे? मजदूरों के ह

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#पारदर्शिता का चस्मा उतर गया?

20 अक्टूबर 2016
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दान पात्र में दान देने वाले लोगो के नामों की सूची जब उतार दी जाती है तब सवालों की सूची का जहन में कौंधना लाजमी है? कुछ एक सवाल इस तरह के हो सकते है, मसलन दान देने वाले कौन थे जो अपना नाम छुपाना चाहते है? उनको अपने नाम के उजागर होने से डर कैसा? दान में दी गई राशि का स्वरुप कैसा था/है, इत्यादि इत्याद

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#सर्जिकल_स्ट्राइक आपके डाटा पे?

22 अक्टूबर 2016
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३६ लाख से ६५ लाख तक के आकडें की कहानी और उसके चर्चे अख़बारों की सुर्खियां भी है और इसका अफ़सोस भी की देश की जनता की गाढ़ी कमाई पर तकनीक का सर्जिकल स्ट्राइक हो गया है? अपुष्ट ख़बरों की माने तो इसमें हाथ देशी ही नहीं नहीं वल्की विदेशी हैकरों का भी है जो आपके महत्वपूर्ण जानकारियों पे डाका डाल रहें है?

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#एक_कामयाब_मुल्क_होता?

22 अक्टूबर 2016
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आज़ादी के बाद से ही अगर हमारा देश भारत पड़ोसियों की गुस्ताखियों का माकूल जबाब दिया होता तो क्या हमारा पडोसी एक कामयाब मुल्क नहीं होता? लगभग ६-७ दशकों के बाद आज के तारीख में वे इस दिशा में सोच रहें है की जो किया आजतक, क्या गलत किया? सरहद पार पड़ोस से जो बुद्धिजीवी वर्ग है उनकी आवाजों पे हम गौर करें तो

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#राजनैतिक_बयानवाजी

25 अक्टूबर 2016
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सभी एक खास वर्ग के समर्थक गधे और मुर्ख होते है, इसका सीधा सीधा सम्बन्ध क्या देश की जनता से है, या फिर किसी और से? इसे देश की जनता के साथ साथ देश के उन हुकुमरानों को भी समझना पड़ेगा की हम क्या बोल रहें है? देश लोकतान्त्रिक है अभिव्यक्ति की आज़ादी भी है, जनता बोल नहीं, लोक

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अंतिम यात्रा का विवरण

26 अक्टूबर 2016
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*अंतिम यात्रा का क्या खूब वर्णन ←_←←_←←_←किया है* था मैं नींद में और. ←_← मुझे इतना सजाया जा रहा था....←_← बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था....←_←←_← ना जाने था वो कौन सा अजब खेल मेरे घर में....←_←←_←←_←←_← बच्चो की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था....←_←←

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#सुना_है_जजों_के_फोन_टेप_हो_रहें_है?

31 अक्टूबर 2016
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टेप हो रहें है या नहीं ये तो जाँच का विषय है, क्या ये पुख्ता जानकारी है इस पर भी सवालिया निशान है? बात करते हुआ सुने गए थे दो जज, बात करते हुए सुने गए थे दो राजनेता, बात करते सुने गए थे दो पुलिस वाले, बात करते हुए सुने गए थे दो वकील, इनके द्वारा की गई बातों की आवाजे किस तक कैसे पहुंची कोई पुख्ता ज

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#सुरक्षाबल मानवाधिकार आयोग

2 नवम्बर 2016
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एक नई परिभाषा के साथ नये परिवेश में अलग से एक आयोग की व्यवस्था की मांग की जा रही है, जिसमे सुरक्षा वलों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार और अत्याचार की सुनवाई हो सके? वैसे सुनने में तो अजीब लग रहा है मगर एक आयोग (सुरक्षा बल मानवाधिकार आयोग) होनी चाहिए जिसमे देश के सुरक्षा बल य

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#लाश_पे_कफ़न_राजनैतिक_झंडों_का

2 नवम्बर 2016
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लाश गिरी नहीं की टूट पड़े गिद्धों की तरह, अगर देश का यह राजनैतिक स्तर है तो देश को बदलने में अभी भी बर्षों लगेंगे? लाश न गिरे इसकी चिंता किसी भी राजनैतिक दल को नहीं है,मगर लाश पर गिद्धों की तरह ऐसे टूट पड़ते है जैसे की सारा वोट बैंक का निवाला इनके ही चोंच में ही आ जाए

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#कुर्सी के लिए मौत पे भी करेंगे राजनीती?

3 नवम्बर 2016
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एक राजनैतिक खानदान जो सैनिको के खौफ के साये जीते हुए कभी सैनिको का भला नहीं चाहा आज आंसू बहा कर क्या जता रहें है? आज़ाद हिन्द फ़ौज को मान्यता देने से भी कतरा रहें थे,OROP लागु करने को भी तैयार नहीं थे मगर राजनीती करने की तत्परता देखते ही बनते ही?देश की जनता ने राजनैतिक दलों को दरकिनार क्यों किया इस

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#देश_परेशान_है?

4 नवम्बर 2016
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मीडिया के बहकने से ज्यादा उसके एकदिवसीय उपवास के आदेश पर देश परेशान है, कभी देश (भारत) के बारे में आज तक सकारात्मक लेख नहीं लिखने वाले बीबीसी ने तो उपवास को हत्या में तब्दील कर दी ये तो हद हो गई यारों? इस उपवास/हत्या का लेखा जोखा का सार अभिव्यक्ति की आज़ादी से जोड़ कर देखा जा रहा है, क्या कभी किसीन

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#सवाल_तो_हम_पूछेंगे

6 नवम्बर 2016
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बागों में बहार था जब देश में देश को लूटने का व्यापार था? लूट में हिस्सा था तो सवाल भी शर्मिंदा था? हिस्सा के निवाले पे लगाम से सवाल भी बेलगाम है, सवाल तो आखिर सवाल है क्या हम भी पूछ सकते है? शुरुआत कहाँ से करें आज़ादी के बाद से या फिर जब से पत्रकारिता के व्यापार के माध्यम से लोकतंत्र में लोकतंत्र

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#वोट_दीजिये_और_कैद_रहिये

6 नवम्बर 2016
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इसे देश का विडम्बना कहिये या फिर कुछ और मगर हकीकत यही है की देश लोकतान्त्रिक होते हुए भी, देश की जनता नेताओं के हाथों गुलाम है और घरों में कैद है? लोकतान्त्रिक कैद और कैदों से जरा हट के है:- भर्ष्टाचार मुक्ति के नाम पे वोट : प्रदुषण के नाम पे कैद? सम व

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#कल_आज_और_कल

11 नवम्बर 2016
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#बेहतर कल के लिए आपका सहयोग ज़रूरो है जो कल गरीब थे वे आज भी गरीब है, मगर आने कल में भी अगर वे गरीब बने रहें तो व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है? सुनहरे कल के लिए आज क्या थोड़ा सा कष्ट देश की जनता नहीं उठा सकती? निर्माण स्थल पर लिखा हुआ मिल जाता है बेहतर कल के लिए आपका सहयोग ज़रूरी है.देश ने आज़ादी के

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#नोटबंदी #वक़्त_की_नब्ज

19 नवम्बर 2016
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विमुद्रीकरण अब अपने मंजिल से चंद कदमो की दुरी पे है, शिखर पर पहुँच कर अपनी उपलब्धियों को साकार करने और असफलता के बीच सिर्फ ७ दिनों का समय है.(समय =दिनक २१.११.२०१६ से २६.११.२०१६) वक़्त के साथ साथ देश, जनता की जब्ज टटोलने वाले विपक्ष के राजनैतिक महारथियों के पास यही एक आखिर मौका होगा अगर चूक गए तो आ

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#आंधी_हमारी_बहार_तुम्हारे

22 नवम्बर 2016
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शिर्षक ऊँटपटांग है मगर देश की हकीकत भी इसी में छुपी है? हमारे देश में छाया चित्र (फिल्म), क्रिकेट और राजनीती का हमेशा से ही बोलबाला रहा है और आज भी इसमें कहीं भी कमी नहीं आई है. मगर हम आज राजनीती और सिनेमा के रुपहले परदे पर के किरदार आपस में किस तरह एक दूसरे से जुड़े हुए है यह बताने की कवायत है.

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#खोया_खोया_कालाधन

24 नवम्बर 2016
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१९६० के दशक की एक फिल्म "काला बाजार" और उस फिल्म का एक सदाबहार गाना जो हिट था हिट है और हिट रहेगा. खोया खोया चाँद, खुला आसमान, आँखों में सारी रात जाएगी, तुमको भी कैसे नींद आएगी? फिल्म का नाम "काला बाजार" और ऊपर से ये गाना, क्या साहित्य आने वाले का भी आइना होता है? इसी फिल्म के एक गाने के मुख

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#बिना_नकदी_के_जीना_सीखिये

25 नवम्बर 2016
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सन्देश साफ़ है भविष्य की अर्थव्यवस्था बिना नकदी के, आज का मजदूर भी एक एक पाई का हिसाब कर लेता है, एक पैसा भी कम देकर तो देखिये जनाब? एक हकीकत यह भी है जितना पढ़े लिखे को नहीं पता उतने फीचर मोबाइल फोन के मजदूरों को पता है? एटीएम के बारे में जितना हम जानते है उससे ज्यादा एक मजदूर जानता है ये देश की

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#परिवर्तन

26 नवम्बर 2016
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राजनीती के महारथी को भी राजनीती नहीं सूझ रही है की बदले हुए माहौल में राजनीती कैसे करें? इस परिवर्तन के राजनैतिक फायदे:- दुश्मनी निभाने वाले दुश्मन भी दोस्त बन गए? परिवार का राजनैतिक झगड़ा समाप्त हो गया? नहीं बोलने वाले भी बोलने लग गए? खांशी भी अचानक से ठीक हो गया? लंबे समय से बीमार मुख्यमंत्

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#परिवर्तन #हड़ताल

27 नवम्बर 2016
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कल की तारीख २८.११.२०१६ भारत बंद का आह्वान, देश की जनता के प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधि को, क्या जनता के मूड को भांपने में कहीं चूक तो नहीं हो गई थी? सब साथ आये और फिर कदम वापस खीच भी लिए सन्देश उनका क्या देश की जनता समझ पाई या फिर जनता अपने आप में ही उलझी रही, इंतजार कीजिये वक़्त बताएगा? बंद

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#ऊँटपटांग_पोस्ट_की_याद_में

10 दिसम्बर 2016
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कहीं नॉट में चिप तो नहीं, जहाँ जहाँ इक्कट्ठी हो रही है छापे भी वहीँ वहीँ पड़ रहे है? कुछ तो गड़बड़ है दया जरा जा के पता तो करो की मामला क्या है!

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#परिवर्तन

2 जनवरी 2017
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चर्चा भी उसीकी होती है जो कामयाबी की मंजिल तक पहुँचने का मादा रखता है और विरोध भी उसीका होता है जो कामयाब होता है. तब क्या देश यह मान ले की नोटबंदी ने अपना सफर तय कर लिया है? कहना जल्दवाजी होगा मगर देश इसका आंकलन तो कर ही सकता है? देश में गरीब पहले भी थे और आज भी है सिर्फ आंकड़े बदले है दशा और दि

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#परिवर्तन

8 जनवरी 2017
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१. पंचशील नीति के तहत देश के एक राजनैतिक दल का प्रतिनिधि मंडल पड़ोस के देश में १९६२ को याद करने जा रहा है? २. पुरुष्कार वापसी दल के सदस्य आजकल चर्चा से गायब है पुरुष्कार ले रहें है या वापस कर रहें है देश की जनता अनजान है, उनकी ज़रुरत देश के कई हिस्सों में है? ३. राजनैतिक पर्यटकों में कमी का अंदाजा इ

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#परिवर्तन

18 जनवरी 2017
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देश को गरीब की ज़रुरत है?गुलछर्रे उड़ाने के लिए विदेश और पैसा कमाने के लिए गरीबों को गरीबी (फटे हुए कुर्ता) दिखा कर वोट का मांगना, क्या देश के गरीबों को पसंद आएगा? देश में गरीबी है क्योंकि गरीबी एक राजनैतिक धंधा है क्योंकि अगर गरीबी हट गई तो वोट बैंक को दिशा देने वाला राज

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#परिवर्तन

25 जनवरी 2017
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कोई माने या माने मोहब्बत/इंसानियत से बड़ा मजहब, कोई इस दुनिया में नहीं है?

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#परिवर्तन

3 फरवरी 2017
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राजनैतिक दल चंदा और धंधा? लचर व्यवस्था को लाचार रखने में ही राजनैतिक भलाई है, जिसे सालों पोषा गया उसके परदे के पीछे की कहानी और आगे की तस्वीर जुदा है, जिसे छिपाने/बिगड़ने का श्रेय देश के बुद्धिजीवी वर्ग पत्रकार,कानून और संविधान के जानकर के अलावे इतिहासकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. कोई झूठल

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अनपढ़ काम चलाऊ है मगर राजनीती में बिकाऊ है?

26 फरवरी 2017
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#परिवर्तन राजनैतिक परिवार अगर है तो अगली पीढ़ी भी इसी पेशा को अपना पसंद करेगी कुछ अपवाद ज़रूर है, मगर हिंदुस्तान के राजनैतिक पृष्ठभूमि में सोलह आने सच है! पढ़े लिखे जमात के मुंह पे झन्नाटेदार तमाचा तब लगता है जब एक अनपढ़ राजनैतिक पृष्ठभूमि वाली परिवार की अगली पीढ़ी प्र

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#परिवर्तन

1 मार्च 2017
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आज़ादी अपनी अपनी बोल अपने अपने? अभिव्यक्ति आज़ादी अगर हमारा संवैधानिक आधार है तो फिर इस पर सफाई, सवाल और वबाल क्यों? क्या मेरा अधिकार आपसे कम है या आपका अधिकार मुझसे अधिक, अगर नहीं है तो ये वबाल का रास्ता निकलता किधर से है? कहीं ऐसा तो नहीं की जब संविधान लिखी गई थी तब से आज के परिपेक्ष में इस पर

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#परिवर्तन

4 मार्च 2017
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"पंजाब" "दिल्ली" नहीं है, चुनावों के नतीजों पे एक आंकलन ११ मार्च से पहले, बाद के परिणाम के लिए इंतजार कंपनी के समय से अपने घडी का समय मिला ले. १. पंजाब दिल्ली के दिल के कितने करीब है, इसका आंकलन अगर आज की तारीख में लगाया जाये तो "हाथ में झाड़ू" थामने के जैसे है! २. देश के प्रदेश जिसकी राजनीतिक

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#परिवर्तन

5 मार्च 2017
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पुत्र मोह और २१वी सदी का राजनैतिक घराना! देश में ४ राजनैतिक घराने ऐसे है जो पुत्र मोह के चंगुल में फंसे होने के वावजूद विरासत के अस्तितिव को बचाने के लिए संघर्षरत है! (a) जो पार्टी जितनी पुरानी है उसके परेशानी उतनी ही बड़ी है, शतक लगा चुकी देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी का लगड़ा घोडा दौड़ में बने

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5 मार्च 2017
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धर्मनिरपेक्षता को धार्मिक जगह और जलसो से दूर रहना चाहिए मगर जब दो युवराज को मंदिरों के चौखट पे सीश झुकाते हुए देखा गया, तब देश की ऐसा लगा की अब धर्मनिरपेक्षता सत्ता के लिए वो चौखट भी चूमने के लिए तैयार जिसे आज़ादी के बाद से ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पे दुत्कारा जा रहा था? एंटोनी कमिटी न जाने क्या क्

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6 मार्च 2017
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नोटबंदी के दौरान कम दबाव के कारण राजनैतिक क्षेत्र से उठा दीदी नामक चक्रवाती तूफ़ान जो बंगाल की खाड़ी से होते हुए दिल्ली, यू प, बिहार और आस पास के राज्यों में तहलका मचाने के बाद, भर्ष्टाचार के दबाव के आगे आ कर शांत हो गया है? उसके पुनः आगमन की भविष्यवाणी की तारीख, जो की ११ मार्च के निकट है? मुमकिन है

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12 मार्च 2017
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गधे तो गधे होते है जिन्हें आराम करना नहीं आता; ऐश करना नहीं आता, भर्ष्टाचार से दामन को दागदार करना नहीं आता; गधे के काम को बोलना नहीं आता, किये गए काम को दिखाना नहीं आता; बाँट कर राज करना नहीं आता, समाज में ज़हर घोलना नहीं आता, सच को छुपाना नहीं आता? गधे तो गधे होते है जिन्हें आराम करना नहीं आ

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#परिवर्तन

2 अप्रैल 2017
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जनता_की_नब्ज_और_EVM जीत पर EVM का सही होना और हार पे EVM ख़राब रहना देश की राजनैतिक मनोदशा को दर्शाता है! हार की आशंका जब तब पहले से ही ठीकरा EVM पे फोड़ देना चाहिए इससे नाकामी और सरकार की बदनामी दोनों से निजात मिलती है? इसका सफल प्रयोग दिल्ली में होने जा रहा है? उन वायदों को निभाना जो जनता से इसस

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