रिश्वतखोरी पर कटाक्ष करती व्यंग कविता -
@@ रिश्वत महान जी,रिश्वत महान है @@
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सुबह शाम मंदिरों में, रिश्वत थोड़ी दीजिये |
फिर चाहे मनचाही ,रिश्वत आप लीजिये ||
रिश्वत ही तो देश की ,आन बान शान है |
रिश्वत महान है जी ,रिश्वत महान है ||
ईमान का दामन पकड़ ,जीवन बर्बाद न कीजिये |
रिश्वत की कमाई से, जीवन के मजे लीजिये |
भ्रष्ट लोक तंत्र की ,रिश्वत ही तो जान है |
रिश्वत महान है जी ,रिश्वत महान है ||
सर्वव्यापी है रिश्वत ,यकीन मेरा कीजिये |
बिना किसी भय के, आप रिश्वत लीजिये |
घूस लेता भगवान् भी ,जो सर्व सक्तिमान है |
रिश्वत महान है जी ,रिश्वत महान है ||
जो रिश्वत से रहता दूर ,वो आदमी अनाड़ी है |
रिश्वत से ही देश की ,चलती सरपट गाड़ी है
रिश्वत की चमक से ही, चमका हिन्दुस्तान है |
रिश्वत महान है जी ,रिश्वत महान है ||
करनी है अगर उन्नति , तो रिश्ता रिश्वत से कीजिये |
ईमान को ताक पर रख कर,रिश्वत भरपूर लीजिये ||
रिश्वत की जगमग से ही , जगमगाया यह जहान है |
रिश्वत महान है जी ,रिश्वत महान है ||
रिश्वत है जादू की छड़ी ,अजमाकर देख लीजिये |
मन चाहे फल पाओगे ,यकीन मेरा कीजिए ||
कोठी में बदल जाएगा,जो टूटा सा मकान है |
रिश्वत महान है जी ,रिश्वत महान है ||
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