शासन प्रशासन एवं समाज की कुव्यवस्था पर करारी चोट करती हास्य कविता-
@@@@@@@ टूटना हसीन ख्वाबों का @@@@@@@
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एक हसीन ख्वाब मुझको आया |पत्नी ने प्यार से बुलाया |
अपने सीने से लगाया |अपनी पलकों पर बिठाया |
बोली वो मुझसे मीठी बोली |जिसकी जुबाँ से निकले गोली |
लग रही थी वो भोली |जब कहा मुझे हमजोली |
बोली तुम्हारा हर कहा मानूंगी |अब भृकुटी नहीं तानूंगी |
आप पर मैं हूँ कुर्बान |हैं आप ही मेरे भगवान् |
आप मेरे जीवन की है शान | हम दो तन एक है जान |
मुझे नहीं चाहिए कोई गहना |मुझे प्रिय आपकी बहना |
यह चमत्कार देख मैं चकराया |और अपनी मर्दानगी पर उतर आया |
मैंने गाल मस्ती में काटा |तो पत्नी ने मारा चांटा |
मेरी नीन्द हुई हराम |और ख्वाब मेरा टूट गया |
नहीं सुधरे मर्द के हाल |और भाग मेरा फूट गया |
एक ख्वाब दूसरा आया |जनता ने पी. एम.मुझे बनाया |
मैंने जनता का जमीर जगाया |देश में ईमान का राज लाया |
मैंने एक अध्यादेश निकाला |जब्त किया सब धन काला |
बूचड़ खानों पर लगवाया ताला | हैवानों को जेलों में डाला |
जमीन के भाव जमीन पर आये |क़ानून ऐसा देश में लाया |
नहीं रहा तब बेघर कोई ,सबके हिस्से अपना घर आया |
जमीन हो गयी इतनी सस्ती ,कि ख़त्म हो गयी गंदी बस्ती |
छा गयी खुशी की मस्ती |ऊँची हो गयी मेरी हस्ती |
तरक्की होने लगी दिन रात |मैं हो गया विश्व -विख्यात |
नहीं रहा अब कोई भूखा | नहीं रहा देश में सूखा |
नहीं रहा कोई जुर्मी शैतान |दुनिया देख हुई हैरान |
जिसने नारी की इज्जत लूटी ,उसकी कटवा डाली "टून्टी" |
हरामियों की किस्मत लूटी |निठल्लों की नौकरी छूटी |
जब दिवाली सर पर आयी ,पटाखों पर मैंने रोक लगायी |
शान्ति सर्वत्र छायी |खुश हो गए पर्यावरण भाई |
दिवाली की रात जब आयी ,खुशियाँ हर ओर थी छायी |
ऎसी दिवाली कभी नहीं आयी |बोल उठी एक बूढी ताई |
तभी एक पटाखा जोर से फूटा |मेरा भाग मुझसे रूठा |
मेरी मेहनत गयी बेकार |और ख्वाब मेरा टूट गया |
नहीं सुधरे भारत के हाल ,और भाग मेरा फूट गया |
एक ख्वाब फिर मुझको आया |मेरा लेखन विश्व में छाया |
मैंने खूब यश कमाया |नोबेल पुरुस्कार भी मैंने पाया |
स्वागत हुआ मेरा भारी |जनता उमड़ पड़ी थी सारी |
बुलावा मंच से जब आया ,मेरी फूल गयी थी काया |
मैंने बुलंदी जो इतनी पाली ,मेरी चाल हो गयी मतवाली |
ईनाम लेने जब मैं लपका ,मैं धड़ाम से पलंग से टपका |
मेरा सृजन हुआ बेकार |और ख्वाब मेरा टूट गया |
नहीं फला मेहनत का बाग़ और भाग मेरा फूट गया |
एक ख्वाब फिर मुझको आया |मैं समाज सुधारक बन कर छाया |
मैं ऐसी जाग्रति लाया ,कि सुधर गया भारत का जाया |
दहेज़ और मृत्यु भोज पर ,मैंने पूर्ण रोक लगवायी |
भ्रूणहत्या के दोषियों को ,फांसी की सजा दिलवायी |
झगड़ा-फसाद रहा न कोई ,तो थाने- कोर्ट हो गए सूने |
जेलें बदली कारखानों में,और रोजगार हो गए दूने |
मेरे स्वागत में भीड़ उमड़ी तो ,पुलिस कंट्रोल न कर पायी |
मेरी एक झलक देखने खातिर ,धीरज नहीं धर पायी |
भीड़ में खाकर गच्चा , दब गया एक मासूम बच्चा |
मैंने सूनी उसकी चित्कार,जो हो गयी मेरे दिल के पार |
मेरा स्वागत गया बेकार | और ख्वाब मेरा टूट गया |
नहीं सुधरे समाज के हाल ,और भाग मेरा फूट गया |
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