@@@@ नारी जुबाँ के तीर,दिल को देते चीर @@@
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जब -जब नारी ने नर की ,खिल्ली खूब उड़ायी है |
तब - तब दो परिवारों में , हुई गजब लड़ाई है ||
तन से कमजोर नारी ने , जुबाँ के तीर चलाएँ हैं |
मन से कमजोर मर्दों ने , वो तीर दिलों पे खाएँ हैं ||
तलवार का घाव भर जाता है,पर जुबाँ का घाव नहीं भरता |
नारी की जुबाँ से चोट खाकर , नर भी धीरज नहीं धरता ||
भ्रमित होकर गिर पड़ा जब ,पाण्डव महल में दुर्योधन |
"अन्धों के अन्धें होते हैं",ये कह कर द्रोपदी ने दुखाया मन ||
अपमानित होकर दुर्योधन ने , मन ही मन ये ठानी थी |
करेगा बेईज्जत द्रोपदी को ,जो पाण्डवों की रानी थी ||
महाभारत के युध्द का कारण, थी द्रोपदी की बद जुबान |
एक ताने के कारण देखों ,कितने वीरों की गयी थी जान ||
सीता -स्वयंवर के अवसर पर ,आया था लंकेश रावण भी |
उतावला था वो इतना ,कि भारी लग रहा था एक क्षण भी ||
धनुष के नीचे दब गयी जब , एक उँगली रावण की |
खिल खिला पड़ी थी सीता , दशा देख कर रावण की ||
अपमानित होकर लंकापति रावण ,रुक न पाया एक क्षण भी |
अपने इस घोर अपमान को , न भूल सका था रावण भी ||
अपने इस घोर अपमान का बदला , लेना चाहता था रावण भी |
सीता से हुआ यह अपमान ही,बना सीता-हरण का कारण भी ||
चाहती है अगर हर नारी ,कि हर नर उसका सम्मान करे |
तो न तो तन दिखाए अपना ,न नर का वो अपमान करे ||
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