पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय जनमानस को विशेष रूप से युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले लिया है | बाजारवाद की बाढ़ में नैतिक मूल्य बह गए हैं | इन्सानियत लुप्त सी होने लगी है |
अनाचार,दुराचार,भ्रष्टाचार,अत्याचार व्यभिचार रुपी दुशासन भारतीय संस्कृति रुपी द्रोपदी का चीर हरण करने लगे हैं | रिश्तों में मिठास की बजाय कटुता आ गयी है |खून के रिश्तों का खून होने लगा है |जरा -जरा सी बात पर तलाक़ होने लगे हैं | हत्या व आत्महत्या की घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ रही हैं |स्वार्थ इस कदर हावी है कि अधिकांश लोग अपने लाभ के लिए दूसरों का नुक्सान करने में जरा भी नहीं हिचकते | रातोंरात अमीर बनने की फिराक में खाद्य व पेय पदार्थों में मिलावट ,कालाबाजारी ,घूसखोरी अपहरण,लूट,चोरी और ठगी जैसे नाजायज तरीके अपनाने लगे हैं | शराब,शबाब और कबाब के शौक़ीन नेता और अभिनेता युवाओं को गुमराह कर रहे हैं |अक्ल पर शक्ल हावी होने लगी है | रही सही कसर नक़ल ने पूरी कर दी है | युवा मेहनत से जी चुराने लगे हैं | वे नक़ल से परीक्षा पास करने की फिराक में रहने लगे हैं | दूध और घी तक नकली बनने लगे हैं |अब सौदें ही नहीं, शादियाँ तक नकली होने लगी हैं | काम की आँच में बचपन झुलसने लगा है | आज आम आदमी के पास पहले से अधिक सुख-सुविधा के साधन मौजूद है,लेकिन सुकून नहीं है |पहले अभावों में भी खुशियाँ थी ,पर आज सपन्नता में भी खुशियों का अभाव है | इसका कारण गलत सोच और जीवन शैली है,जिसे बदलने की जरुरत है | उन्हें यह समझाना होगा कि दूसरों को ख़ुशी देने तथा अपनी योग्यता ,हुनर और मेहनत से सफलता प्राप्त करने से ही सच्ची ख़ुशी मिलती है |