आदर्श नारी के गुण बखान करती कविता -
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@@@@@@@@ सुलखण नार @@@@@@@@
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घर -मन्दिर की जो हो देवी ,पूजे जिसको उसका भरतार |
जीवन में ही स्वर्ग मिल जाए ,पाकर पत्नी सुलखण नार ||
जान हो जो अपने बच्चों की ,पति करे जिस पर जान निसार |
घर को जो स्वर्ग बना दे ,वो कहलाती सुलक्षण नार ||
काया जिसकी कंचन जैसी ,माया जिसकी अपरम्पार |
घर को जो मंदिर बना दे ,वो कहलाती सुलखण नार ||
कोयल सी वाणी जो बोले ,होता जिसकी हर बात में सार |
बच्चों को हुनर सिखाने वाली , कहलाती सुलखण नार ||
जिसके दर्शन मात्र से ही ,आनन्द का नहीं रहता पार |
ऐसी हर सुदर्शन नारी , कहलाती है सुलखण नार ||
घर दमकता जिसके दम से ,जीवन का हो जो आधार |
जंगल को जो मंगल कर दे ,वो कहलाती सुलखण नार ||
मेहमान नवाजी देख जिसकी ,आते अतिथि बारम्बार |
चीजें रखे जो सही ठौर पर ,वो कहलाती सुलखण नार ||
परम पवित्र दिल हो जिसका ,बहाती जो स्नेह की धार |
दुर्जन को जो सज्जन करदे ,वो कहलाती सुलखण नार ||
रखे साफ दिल जो अपना ,रखे साफ़ अपना घर-बार |
पारस जैसा गुण हो जिसमें ,वो कहलाती सुलखण नार ||
प्रवीण हो जो हर कला में ,देती हो जो सुख अपार |
परिजन -सेवा शौक हो जिसका ,वो कहलाती सुलखण नार ||
इस धरा की सर्वोत्तम रचना ,करती है जो सपने साकार |
दुःख में भी जो साथ निभाएं ,वो कहलाती सुलखण नार ||
भगवान् तो है कोरी कल्पना ,पर सुघड़ नारी होती साकार |
वन्दन करता दुर्गेश भी उसको ,जो होती सुलखण नार ||