@@@@@@@ किसका करें विश्वास अब @@@@@@@
*******************************************************************
सोचता है क़ुछ,बोलता है क़ुछ ,करता है क़ुछ ,पर लिखता है क़ुछ |
इन्सान की फितरत है कैसी ,होता है क़ुछ , पर दिखता है क़ुछ ||
दहेज को दानव कहने वाला ,दहेज दुगना लेता है |
वफा की कसमें खाने वाला ,खुद ही धोखा देता है ||
पोल खोल कर जो दूजों की ,तहलका मचाता है |
लिफ्ट के चेम्बर में वो ,"जबर-रास" रचाता है ||
सदाचार सीखाने वाला ,क्यों दुराचार फैलाता है ?
"रास"रचा कर "गोपियों" से ,"कन्हैया"जो बन जाता है ||
मासूम सी दिखती बाला पर ,क्यों दिल मेरा ये आता है ?
विश्वास करता है क्यों उस पर ,जब हर बार धोखा खाता है ||
चोरी करने वाला ही ,यहाँ ज्यादा शोर मचाता है |
जीत कर विश्वास नारी का ,फिर "रति-रास"रचाता है ||
"हीर"पाने के चक्कर में ,दण्ड मुझे मिल जाता है |
निकल जाता है पीतल वो ,जो सोना नजर आता है ||
किसका करूँ विश्वास अब ,यह नहीं समझ में आता है |
देख कर दशा दुनिया की ,दिल मेरा घबराता है ||