@@@@@@@ विचारों का एक्स-रे @@@@@@@
*************************************************************
ठगा जा चुका हूँ मैं दोस्तों ,सज्जन से दिखते लाला से |
लुट चुका हूँ मैं साथियों ,मासूम सी दिखती बाला से ||
नहीं ठगा जाता मैं उनसे ,यदि विचार उनके पढ़ लेता |
ठोकर खाने के बाद सदा ही ,मैं अनाड़ी था चेता ||
दूजो के विचार पढ़ने की ,ललक में नीन्द आ गयी |
मेरे अवचेतन मन में गहरी ,वो ललक पूरी समा गयी ||
सपने में विचार पढने का ,अनूठा ज्ञान मुझको हो गया |
और पराये विचार बांचने में ,मैं पूरी तरह से खो गया ||
प्रेमालाप करते जोड़े को देखा ,तो उनके विचार मैं पढने लगा |
जान कर उनके विचारों को ,बुखार मुझे चढ़ने लगा ||
कन्या मित्र सोच रही थी ,कि अच्छा उल्लू फंसाया है |
अक्ल का अँधा ,और गांठ का पूरा ,जाल में मेरे आया है ||
इसके उछलते पैसों से ,मैं सारे ऐश करूँगी |
हसीन नज़ारे दिखाउंगी इसको ,पर नहीं उन्हें केश करूँगी ||
बॉय फ्रेण्ड भी सोच रहा था ,अच्छी कुड़ी फंसाई है |
शादी मेरी हो जाने तक ,मासूम हसीना पायी है ||
पार्क में जा बैठा तो , दो अधेड़ कवि उधर आये |
एक दूजे के छंदों पर ,वो दाद देते नजर आये ||
मन में उनके घुसपेट की तो ,मैं हकाबका रह गया |
इर्ष्या भाव जान कर उनका ,मैं छी: छी : करके रह गया ||
एक नव दम्पति को जाते देखा, तो उनमें घुसपेट कर डाली |
वफादार नहीं थे वे दोनों ही ,मिली जानकारी मुझे ये काली ||
गुरु - शिष्य की क्या बात करूँ मैं ,खुल जाएगी पोल-पट्टी |
शिष्य गुरु को नौकर समझे ,और गुरु शिष्य को हराम हठी ||
बोस को हीरो कह रहा था जो बाबू ,गाली दे रहा था मन में |
जानी बोस की बातें ऐसी ,जो नहीं सुनी थी जीवन में ||
कह रहा था ग्राहक को पंसारी , दे रहा हूँ चीजें सस्ती |
वो मन में कह रहा था अपने ,लूटो ये मूर्खों की बस्ती ||
हाथ जोड़ वोट मांगने वाला ,नेता सोच रहा था मन में |
एक बार मेरे चक्कर में आ जाओ ,फिर कमा लूँगा धन टन में ||
बीवी -बेटे की बाते जान ,मैं गमगीन हो गया |
घुसपेट छोड़ पराये मन की ,मैं सपने में सो गया ||
*******************************************************