@@@@@@@ दृष्टि का भेद @@@@@@@
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नहीं समझ पाया कोई मुझ को,मेरे व्यवहार-विचारों से |
गहराई नदी की कैसे नपती , भला उसके दो किनारों से ||
किसी ने तुलना की हिटलर से,किसी ने महात्मा गान्धी से|
ज्वालामुखी लगता हूँ उनको ,जो डरते सच की आँधी से ||
किसी ने कहा कसाई मुझ को ,और किसी ने जैनी पक्का |
सम्मान दिया किसी ने मुझ को,और दिया किसी ने धक्का ||
किसी ने कहा देवता मुझ को ,किसी ने असुर बताया |
मेरी खुद्दारी ने मुझ को , हर कहीं खूब सताया ||
परम ईमानदार बताकर मुझ को,किसी ने सम्मान बढाया |
तो सबसे बड़ा बेईमान बता कर , किसी ने मान घटाया ||
किसी ने महान बताया मुझ को,और किसी ने हींन इन्सान |
किसी ने मुझे माना अगुणी , तो किसी ने गुणों की खान ||
किसी ने मूर्ख बताया मुझ को,तो किसी ने प्रकाण्ड विद्वान |
किसी ने मान बढाया मेरा , तो किसी ने घटायी शान |
जिसने जिस दृष्टि से देखा , मैं उसको वही नजर आया |
कैसे समझाऊँ मैं सच लोगों को,यही समझ मैं नहीं पाया ||
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