नेता और आम आदमी की तुलना करता व्यंग गीत -
@@@@@@@@@@@@ कबूल @@@@@@@@@@
कान्वेंट तू है मैं हूँ सरकारी स्कूल ,कैसे मेरा साथ तू करेगा कबूल |
तू मोटा काठ के मूसल की तरह ,मैं दुबला हूँ एक सींक की तरह |
तू रहता ठाठ से राजा की तरह,मैं रहता कष्ट में कंगाल की तरह ||
कंगूरा तो तू है मैं हूँ देश की धूल,कैसे मेरा साथ तू करेगा कबूल |
भारत माता लगती मुझ को हूर ,तू क्या जाने जंगली लंगूर |
मुझे प्यारा लगता देश भरपूर ,और तुझे प्यारा विदेशी टूर ||
तू रम होट मैं शरबत कूल ,कैसे मेरा साथ तू करेगा कबूल |
तू खाता मेवा -माल भरपूर ,मैं खाता रोटी दाल में चूर |
मैं बहता पसीना भरपूर ,और तू रहता मेहनत से दूर ||
तू चाय गर्म मैं पानी सा कूल ,कैसे मेरा साथ तू करेगा कबूल |
खर्चता है तू पैसे पानी की तरह ,मैं खर्चता पैसे घी की तरह |
तू रहता देश में गद्दार की तरह ,मैं रहता देश में सेवादार की तरह ||
मैं हूँ दवाई तू बीमारी का मूल ,कैसे तेरा साथ मैं करूँ कबूल |
लूटता है तू डाकू की तरह ,और काटता तू चाकू की तरह |
लड़ता है तू दुश्मन की तरह,और मारता है तू एक गन की तरह ||
मैं पेड़ आम का तू है बबूल ,कैसे तेरा साथ मैं करूँ कबूल |
चुनाव पे लगती तुझे जनता हूर ,हो जाता फिर तू उससे दूर |
सत्ता में तू हो जाता चूर ,धूमिल करता देश का नूर ||
तू है धतूरा मैं कमल का फूल ,कैसे तेरा साथ मैं करूँ कबूल |
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