@@@@ तलाक़ की अनूठी कीमत @@@@
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तू -तू ,मैं -मैं के बाद जब ,बढ़ गयी थी तकरार |
तो लगने लगा संग रहने में ,नहीं है कोई सार ||
मर्म भेदी शब्द -बाणों से , दिल में हो गया घाव |
रोज-रोज के ताने सुनकर,आ गया मुझको ताव ||
नहीं किसी काम के मेरे ,बीवी बोली जब ये मुझ से |
बोला तब मैं क्रोधित होकर,तलाक चाहता हूँ मैं तुझसे ||
ठहाका मारकर बीवी बोली ,तुम्हारी ऎसी हिम्मत !
चुका सकोगे क्या तुम मुझको ,इस तलाक की कीमत ?|
तुम्हारी हर एक चीज का ,मैं हिस्सा लूँगी आधा -आधा |
मैं बोला तुमने तो मुझको ,पहले ही कर दिया है आधा ||
ले लो मेरा धन भी आधा ,पर दे दो मुझे तुरन्त तलाक |
यह सुनकर मेरी बीवी बोली,जो है सचमुच बहुत चालाक ||
अर्ध्दांगनी हूँ मैं तुम्हारी ,सो हक़ है तुम पर आधा |
यदि धन लूँगी आधा , तो तन भी लूँगी आधा ||
न दे सको तुम अगर तो ,याद करो अपनी राधा |
यूँ खाली गया अन्तिम निशाना ,जो मैंने उस पर साधा ||
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