@@@@@@अंध विश्वास का अंधेरा@@@@@@
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दुर्घटना में पलट गयी थी ,एक मारुति कार |
उस मारुति कार में ,मेरा साथी था सवार ||
साथी के एक हाथ में ,गहरी चोट थी आयी |
पास के एक हॉस्पिटल से ,पट्टी थी करवायी ||
शाम को वो साथी घर पर ,मिठाई लेकर आया |
और दुर्घटना में बच जाने का,समाचार मुझे सुनाया ||
मैं बोला जान बच गयी ,यह तो अच्छी बात है |
पर इसमें मुँह मीठा करवाने की ,कौन सी ऐसी बात है?|
वह बोला भक्ति-भाव से , भगवान ने मुझे बचाया है |
इसी खुशी में आज मैने ,सवा मण प्रसाद चढ़ाया है ||
मैं बोला भगवान तुम्हारा रक्षक था,तो वो टक्कर ही क्यों होने दी ?
तुम जैसे परम भक्तों को , इतनी पीड़ा भी क्यों कर दी ??
जो तुम्हें बचा सकता है ,वह रोक सकता था टक्कर भी |
भगवान तुम्हारा भ्रम है, अब छोड़ो उसका चक्कर भी ||
मेरे इस प्रश्न का कोई उत्तर,न दे सका मेरा साथी |
अंध श्रध्दा के अंधेरे में , अकल कहाँ से आती ?|