@@@@@@@-अनमोल आजादी -@@@@@@@
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सन अठारह सौ सतावन का .वो वक्त बहुत अनूठा था |
जन -विद्रोह का ज्वालामुखी ,जब भारत में फूटा था ||
भारतीयों ने अंग्रेजों के संग ,जब खुनी होली खेली थी |
अंग्रेज जिसको ग़दर कहते ,वो आजादी की जंग पहली थी ||
सुहागिनों ने सुहाग खोया ,माताओं ने खोये अपने लाल |
बहनों को भाई खोने पड़े ,हो गयी धरा खून से लाल ||
आजादी की उस पहली जंग में ,चाहे हमारी हार हुई |
पर निज देश पर -मिटने की भावना साकार हुई ||
जोश ,जुनून और जज्बात का ,वो युग कभी का बीत गया |
त्याग भाव से भरा दिल ,न जाने क्यों कर रीत गया ||
अनेक वीरों के बलिदानों से, आजादी तो हम पा गये|
पर भ्रष्टाचार के काले बादल ,सारे भारत में छा गए ||
अब भ्रष्टनेता भाषणों में ,ईमान का पाठ पढ़ाते हैं |
और दुराचारी लोग हमको ,गरिमा का पाठ पढ़ाते हैं ||
जैसे नेता वैसी जनता ,भ्रष्टाचार का दरिया बहता |
लगाते डुबकी उसमें दोनों ,फिर कौन किसी को दागी कहता ||
लोकतन्त्र के नाम पर, अब लूटतन्त्र का राज है |
लालच में डूबे देश पर ,अब कौन करता नाज है |
मूल्य बढ़ गए वस्तुओं के ,पर नैतिक मूल्य गिर गये |
आदर्शों पर चलने वाले ,संकटों से गिर गये||
मिलावटी खाद्य -पेय धड़ल्ले से ,बेच रहे हैं व्यापारी |
बेमौत मारती जनता चाहे ,पर होता लाभ उनको भारी ||
भ्रष्टाचार और जनसंख्या वृद्धि ,अब हमारे राष्ट्रीय खेल हैं|
इनमें चेम्पियन बनाने खातिर ,जनता में पूरा मेल है ||
आज देश के झूठे नेता ,झूठा ढोल पीटते हैं |
नारे लगाते समाजवाद के,और मंचों पर चीखते हैं ||
आजादी हमने दिलवायी ,यह झूठा दावा करते हैं |
और भ्रष्टाचार के जंगल में ,घूस का चारा चरते हैं ||
ऐसे भ्रष्ट नेताओं को ,हमें सबक सीखाना है |
और भ्रष्टाचार को भारत से ,हमें दूर भगाना है ||
अपील जागरूक जनता से ,इस कवि कुंवर दुर्गेश की |
बदल डालो अपनी मेहनत से ,यह बिगड़ी हालत देश की ||
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