@@@@@ निज नाम अमर कर दो @@@@@
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आकाश को छूलो तुम ,मेरी ऊँची नजर कर दो |
मसीहा बन के जग में ,निज नाम अमर कर दो ||
न जुर्म की सीमा है , न जमीर का बन्धन |
जब घूस खाये कोई , तो देखे केवल धन ||
तुम ईमान जगा कर के ,पाक मंजर कर दो |
आकाश को छूलो तुम ,मेरी ऊँची नजर कर दो ||
जब दिखे कोई बिकनी बाला ,तो नीची नजर कर लो |
बहिन समझ उसको ,पाक मंजर कर लो ||
तुम उसे समझा कर के ,कायल उसे कर दो |
आकाश को छूलो तुम ,मेरी ऊँची नजर कर दो ||
न शर्म की सीमा है , न समाज का बंधन |
जब बेशर्मी करे कोई ,तो दिखाए केवल तन ||
तुम नंगई मिटा कर के ,निज नाम अमर कर दो |
आकाश को छूलो तुम ,मेरी ऊँची नजर कर दो ||
जब अन्याय देखो तुम ,तो टेढ़ी नजर कर लो |
विरोध जता कर तुम ,काबू मंजर कर लो ||
तुम अन्याय मिटा कर के ,दिलों में दया भर दो |
आकाश को छूलो तुम ,मेरी ऊँची नजर कर दो ||
मसीहा बन के जग में ,निज नाम अमर कर दो |
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