आज तो हद ही हो गई,'' मिस्टर गुप्ता '', बेटे की बात सुनकर बाहर चले गए। अरुंधति को रोना आ गया और वह अपने कमरे में जाकर फूट-फूट कर रोने लगी। आजकल के बच्चे कैसे हो गए हैं ? उन्हें इतना भी एहसास नहीं रहता कि वह किससे और क्या कह रहे हैं , किससे क्या कहना चाहिए ? आज उनके बेटे पारस ने, अपने पापा से क्या कुछ नहीं कह दिया। कह रहा था- हमारे लिए आपने किया ही क्या है ? न अच्छा खा सकते हैं ,न अच्छा पहन सकते हैं। न जाने रात -दिन किस कार्य में लगे रहते हैं, और हम पर एहसान जताते हैं कि काम कर रहे हैं। हमसे भी यही उम्मीद करते हैं, कि हम भी ,ऐसी छोटी सी नौकरी कर लें। हमारे दोस्त , छुट्टियों में बाहर पिकनिक पर घूमने जाते हैं , मजे करते हैं और हम यही घर में पड़े रहते हैं।
पारस की बातें सुनकर उसके पिता को बहुत दुःख हुआ और अपने दुःख को वह किससे कहते और वह चुपचाप घर से बाहर चले गए।
जब अरुंधति ने यह बातें सुनी, उसे भी बहुत दुख हुआ, अपने आप तो वह सारा दिन, बच्चों की बातें सुनती ही रहती है। बच्चे कुछ न कुछ शिकायतें उससे करते ही रहते हैं। वह सब संभाल लेती है ,'कभी समझा देती है और कभी अपने आपको भी समझ लेती है।'
किंतु आज पारस के तेवर देखकर उसे लगा -अब बच्चे कुछ ज्यादा ही उग्र होते जा रहे हैं। उन्हें क्या लगता है ?हम उनके लिए मेहनत नहीं कर रहे हैं, कार्य नहीं कर रहे हैं हम जो भी कर रहे हैं सब' सिर्फ उन्हीं के लिए' तो कर रहे हैं। तब भी बच्चों की नजरों में हमारा, कोई महत्व नहीं रह गया है। कह देते हैं-आपने हमारे लिए किया ही क्या है ?सभी के माता-पिता यह करते हैं ? कितना दुख होता है ?जब इतने परिश्रम और इतनी कंजूसी से एक-एक पैसा जोड़ते हैं। किसके लिए? सिर्फ अपने बच्चों के लिए ही तो.......
कुछ देर मन के बढ़ते दर्द के बोझ को हल्का करने का प्रयास करती रही, तब उसने सोचा - कि अब बच्चों को भी समझाने का समय आ गया है। हालांकि बच्चे समझ गए थे, कि उन्होंने कहीं न कहीं कुछ ऐसा कह दिया है जो उनके दिलों को चोट पहुंचा गया है, इसीलिए वे भी चुपचाप ही बैठे हुए थे।
अरुंधति कमरे से बाहर आई और बोली -हमारे माता-पिता ज्यादा अमीर नहीं थे, हम अमीर और गरीब समझते ही नहीं थे ,हमारे लिए तो छोटी-छोटी खुशियां ही, बहुत थीं। हमने कभी भी रिश्तों को या किसी भी चीज को पैसे के तराजू में नहीं तोला। जो मिल रहा है, उसी में प्रसन्न रहते थे। सरकारी स्कूल में पढे थे, हम तुम्हारी तरह महंगे प्राइवेट स्कूल में नहीं पढे । उसके आधार पर तुम्हारे पापा को जो भी वेतन मिला ,उसी में हम लोगों ने शहर में आकर अपनी जिंदगी का सफर आरंभ किया। तब हमने धीरे-धीरे जिंदगी को समझना सीखा। तब हमें लगा, कि जो हम नहीं कर पाए ,वह कमी हमारे बच्चों में न रह जाए। इसीलिए हम लोगों ने हमारा बजट न होते हुए भी, तुम लोगों को ''प्राइवेट स्कूल ''में डाला।हम चाहते तो ,'तुम्हारी शिक्षा सरकारी विद्यालय ''में भी करवा सकते थे। हमारे बच्चों को किसी भी प्रकार की कमी महसूस न हो,वे किसी भी क्षेत्र में पीछे न जाए कल को उनके पास यह कहने को न रहे कि पैसे की कमी से हमें अच्छे स्कूल में नहीं डाला या पैसे की कमी के कारण हम आगे नहीं बढ़ पाए।
हमारी किसी ने सहायता नहीं की,हमारे लिए तो यही बहुत था कि हमारे माता -पिता ने , हमें पढ़ा -लिखाकर अपने काबिल बना दिया। तुम्हें लगता है, हम पैसे इकट्ठा कर रहे हैं, तुम्हें खर्चे के लिए नहीं देते हैं। क्या यह चीज हम नहीं समझते हैं? तुमने कभी सोचा है, कि आज पड़ोस में कई घरों में कामवालियां लगी हुई हैं , किंतु मैं सभी कार्य अपने हाथों से करती हूं। क्या मेरी इच्छा नहीं होती होगी ?कि मैं कामवाली को रखूं और अपने शरीर को थोड़ा आराम दूं। कई बार मैं बीमार भी हुई हूं किंतु तुम्हारे पापा ने और मैंने, सभी कार्य मिलजुल कर संवार लिए ,वह बाहर के कार्य संभालते थे और मैं घर में ,इसीलिए तो पति-पत्नी को ''गाड़ी के दो पहिए कहते हैं।'' यदि हम तुम्हारी किसी इच्छा को नजरअंदाज भी करते हैं, तो इसका उद्देश्य यह नहीं कि हम तुम्हारी खुशियों नहीं चाहते। तुम्हारी खुशियों के लिए ही तो हम यह सब कर रहे हैं। कल को तुम्हारी बहन बड़ी हो जाएगी ,उसके विवाह के लिए पैसा चाहिए, वह पैसा कहां से आएगा ?तुमने कभी सोचा है, किंतु हम सोचते हैं, हम यह सोचते हैं कि जब यह पढ़ -लिखकर बड़ी हो जाएगी किसी अच्छे से घर में इसका विवाह होगा, तो क्या उसके लिए पैसा नहीं चाहिए ? पारस तुम अभी 12वीं में पढ़ रहे हो और तुम्हारे कितने ट्यूशन होते हैं ?तुम्हारी फीस तुमने कभी देखी है ,वो पैसे कहां से आते हैं ?
तुम्हारे पापा कहीं चोरी या डांका डालने नहीं जाते ,तब वो कार्य घर पर लेकर पूर्ण करते हैं ताकि आमदनी बढ़े। आगे तुम इंजीनियर बनना चाहते हो या डॉक्टर बनना चाहते हो, तो क्या आगे पढ़ाई के लिए पैसा नहीं चाहिए किन्तु हम सोचते हैं। हम अपनी छोटी-छोटी खुशियों को तुम्हारे आने वाले भविष्य के लिए कुर्बान कर देते हैं, क्या मेरी इच्छा नहीं होती ?कि मैं सहेलियों के साथ घूमने जाऊं , पार्टी में जाऊं, फिल्म देखूं किंतु मैं नहीं जाती क्यों? क्योंकि कहीं भी चले जाइए, तुम्हें पैसे की आवश्यकता होगी तो तुम्हारे भविष्य के लिए सोच कर ही हम अपनी छोटी -छोटी खुशियों को दबा जाते हैं ताकि भविष्य में तुम्हारी शिक्षा के लिए पैसे की आवश्यकता हो तो कोई कमी न आए। इतना तो तुम्हारे पापा कमा ही लेते हैं कि हम अपनी इच्छाएं पूर्ण कर सकते है किन्तु नहीं करते क्यों ?''सिर्फ तुम्हारे लिए ''
यह कहकर अरुंधति ने, दो पासबुक लाकर बच्चों के सामने पटक दीं और बोली-जब तुम पैदा हुई थीं तो तुम्हारे पापा के पैसे भी बढ़े थे,उनकी उन्नति हुई थी, जितने भी पैसे बढे ,हमने अपने ऊपर खर्चा नहीं किये , तुम्हारे पापा ने तुम्हारे नाम से ,खाते में डालने आरंभ कर दिए और दूसरी पासबुक पारस की है , जब वह 5 साल का हुआ था ,तब इसका भी बैंक में खाता खुलवा दिया था। ताकि हम छोटी-छोटी बचत करके, उसका भविष्य उज्ज्वल बना सकें। दोनों के नाम पर पैसा है, हमने अपने लिए कुछ नहीं जोड़ा, यह सब किसलिए कर रहे हैं ? सिर्फ तुम लोगों के लिए,'
अब भी , यदि तुम्हें लगता है कि हमने जीवन में कुछ भी नहीं किया है, तो तुम लोग को मैं छूट देती हूं। यह पैसा तुम्हारे पास है, पासबुक तुम्हारे पास है, जितना चाहे तुम खर्च कर सकते हो ,घूमना चाहते हो, आगे पढ़ना चाहते हो ,तुम्हारी अपनी जिंदगी है। यदि हम तुम्हें किसी बात के लिए रोक भी रहे हैं, तो वह तुम्हारे भविष्य को सोचकर ही रोक रहे हैं किंतु हम क्यों अपने आप को रोक रहे हैं ?कभी तुम लोगों ने सोचा है। हमारा तो भविष्य तुम्हारे साथ ही जुड़ा है, तुम्हारी खुशियों के साथ जुड़ा है। हम क्यों अपनी खुशियों को ग्रहण लगाते हैं ?हम क्यों दोनों पति-पत्नी घूमने नहीं जाते ? क्योंकि हम जीवन में कुछ करना ही नहीं चाहते और न ही, आज तक हमने कुछ किया है। जैसा कि पारस ने आज अपने पापा से कहा।
कभी हमने अपने आप मम्मी -पापा से यह नहीं कहा - कि आप लोगों ने हमें सरकारी स्कूल में डालकर हमारा भविष्य बर्बाद कर दिया ,हमें' प्राइवेट स्कूल '' में क्यों नहीं पढ़ाया ? क्योंकि हम उनके परिश्रम की उनके मेहनत की, उनकी सोच का सम्मान करते थे। हम भी तो अपने माता-पिता से लड़ सकते थे, किंतु उस समय उन्होंने जो हमारे लिए बेहतर समझा ,हमने यही सोचकर स्वीकार किया कि जो वे न कर सके आगे हम करेंगे। तुम दोनों के सामने अब ये '' पासबुक'' रखी हैं। और इनमे जितना भी पैसा है। हमने तुम दोनों के लिए ही जोड़ा है। इसे जैसा चाहे तुम खर्च कर सकते हो, हम तुम्हें, रोकेंगे नहीं। क्योंकि तुम्हारे जीवन के फैसले अब हम स्वयं नहीं लेंगे ,अब तुम्हें अपने लिए स्वयं सोचा होगा। आज मैं सोचती हूं ,कि हमारे माता-पिता हम पर ध्यान नहीं देते थे, वह सही था ,इससे हम अपने लिए सोच सकते थे और अब मैं सोच रही हूं, कि तुम्हें भी अब अपने लिए सोचना चाहिए कि जिंदगी में तुम्हें क्या करना है ?हम तुम्हारे भविष्य को लेकर ,कुछ ज़्यादा ही सोचने लगे थे ,शायद यही हमारी गलती थी।