मज़दूर नहीं तुम बंधु हो
मित्र हो सगे संबंधी हो
करते सारे कठिन काम
मेंरा तुम्हें प्रणाम, मेरा तुझे,
सलाम,,,,,,।
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कंकड पत्थर ढोते हो
फिर भी हंसते रहते हो
दुखो का करते नहीं बखान
मेरा तुम्हें प्रणाम,मेरा तुम्हें
सलाम,,,,,,,,,,।
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बगीचा महकाया करते हो
मन चाहे फूल खिलाते हो
सींचते पौधे सुबह शाम
मेरा तुम्हें प्रणाम, मेरा तुम्हें,
सलाम,,,,,,,,,।
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सूरज सिर पे तपता हो
धरती आग उगलती हो
फिर भी करते नहीं विश्राम
मेरा तुम्हें प्रणाम मेरा तुम्हें
सलाम,,,,,,,,।
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सृजन तुम्ही तो करते हो
धरती पर स्वर्ग रचते हो
भूखे प्यासे करते श्रमदान
मेरा तुम्हें प्रणाम, मेरा तुम्हें
सलाम,,,,,,,,,,।
🌹कोना कोना चमकाते हो
हर जगह दिखाई देते हो
तुम घर- घर करते काम
मेरा तुम्हें प्रणाम, मेरा तुझे
सलाम,,,,,,,,।
🌹सुखो की तुम पर वर्षा हो
लक्ष्मी की तुम पर कृपा हो
पूरे हों तुम्हारे सभी अरमान
मेरा तुम्हें प्रणाम, मेरा तुम्हें
सलाम,,,,,,,,।
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सय्यदा ख़ातून (स्व रचित)
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