🙇🙇 साथियों सभी को छठ की ढेरों शुभकामनाएं
आज मैं आपके सामने अपने बचपन की एक बहुत ही छोटी-सी घटना का जिक्र करूंगी जो ईद से संबंधित है।
😊😊 ईद का त्योहार चांद को देख कर ही मनाया जाता है मुझे अपने बचपन की घटना याद है कि हमने अपनी मां बापू के साथ देर रात तक आसमान में ईद के चांद को तलाशा किया पर बादल होने की वजह से कहीं भी दिखाई नहीं दिया ना ही कहीं से कोई न्यूज़ चांद के निकलने की मिली
😃 😃हम लोग सपरिवार ट्रेन में बैठकर घर पहुंचे परिवार संग ईद मनाने का मज़ा ही कुछ और होता है वहां बड़े पापा और बड़ी मम्मी बेसब्री से हम लोगों का इंतज़ार कर रहे थे देर रात तक जागने के बाद फिर हम सो गए बड़े पापा देर रात तक ऊंचे से स्टूल पर बैठ कर रेडियो से कान लगाए चांद की ख़बर का इंतजार करते रहे और अंत में थक हार कर यह चांद भी ना...... यह कह कर उठ गए।
रात के 3:00 बजे अचानक पटाखे फोड़ने की आवाज से आंख खुली पता चला कहीं चांद हो गया है और सुबह में ही ईद होगी बड़ी मम्मी और पापा ने हमारे लिए ईद के कपड़े जूते और रुमाल सब पैक करके सोते में ही हमारे पास रख दिए थे के अचानक देखकर बच्चे बहुत खुश होंगे हम पूरी रात उन्हें गोद में लेकर लेटे रहे रंग बिरंगे रैपर में लिपटे हुए बहुत खूबसूरत लग रहे थे जिन्हें हम बार-बार देखना चाहते थे सुबह ही देखने के लिए बोला गया था सो मजबूरी थी😔😔
अचानक चांद की खबर सुनकर घर के लोग तो पकवान बनाने में मस्त हो गए और हम लग गए अपना गिफ्ट खोलने में जल्दी जल्दी अपने कपड़े देख बहुत खुश हुए और पहनकर जल्दी से तैयार हो गए उस समय ईदगाह नमाज के लिए सब लोग पैदल जाते थे बूढ़े लोग और बच्चे ट्रक में बैठकर जाते थे यही बात हमारे लिए ख़ास थी बार बार ट्रक के चले जाने का एनाउंसमेंट हो रहा था हम जल्दी-जल्दी दौड़ कर ट्रक में बैठ गए सब दोस्तों के साथ बहुत मस्ती की नमाज़ के बाद वहां लगे मेले का सब ने खूब मज़ा लिया मैंने वहां से सबसे पहले लाल पन्नी लगा चश्मा खरीद कर पहना फिर सफेद रंग का मुकुट खरीद कर लगाया( आज सोचती हूं काश मेरे पास वह फोटो होता) सीटी ख़रीदीं और साथ में दो बड़े
🎈🎈गुब्बारे भी लिए पूरे रास्ते ट्रक में सब नाचते गाते और सीटी बजाते हुए घर पहुंचे हमें देखकर घर वालों का हंसते-हंसते बुरा हाल था और हमने अपने आप को समझा कि शायद बहुत खूबसूरत लग रहे होंगे हम। जिसमें से एक गुब्बारा तो मेरे भाई ने वहीं फोड़ दिया था जिससे मैं उदास थी मेरी रोनी सूरत देखकर मेरी बड़ी मम्मी ने कहां इसको ईदी नहीं मिलेगी यह कहकर मुझे उन्होंने ईदी दी।( रुपए )और मैं शीर(ईद पर बनने वाली स्पेशल मीठी सवंईया )खाने में मस्त हो गई। ऐसे था बचपन का त्योहार कोई दिखावा नहीं सब मिलजुल कर त्योहार मनाते थे।
😃 और हम सबके घर खा पीकर रात में ही घर लौटते थे।; यह यादगार रह गई अब कहां देखने को मिलता है ऐसा प्यार ऐसा अपनापन। बाहर से आने वालों में हम ही हुआ करते थे और पूरा मोहल्ला हमारे इंतज़ार में आंखें बिछाए रहता था।
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