चीखती हुई आवाज़ ,
गूंज रही है मेरे कानों में ,
वह आवाज़ थी या फिर ,
किसी लड़की की बेबसी ,
बाल पकड़ उसकी ,
सड़कों से खींच लाया था उसे ,
कुछ हैवान ने खेतों में ,
चीखती रही चिलाती रही वो ,
अपने इज़्ज़त की भीख मांगती रही वो ,
करके उसे निर्वस्त्र ,
हाथ रख उसके मुँह पर ,
उसके जिस्मों को ही नहीं ,
आत्माओं को भी नोच डाला था वो ,
फिर बड़ी बेरहमी से ,
गला उसकी रेत डाला था वो ,
जीत गया उस हैवान की हैवानियत ,
फिर हार गयी थी एक लड़की ,
अब बहुत हुआ अत्याचार ,
अब बंद करो ये दरिंदगी ,
बहुत देख ली तेरी मर्दानगी ,
कैसे भूल गया तू ,
मैं ही दुर्गा, मैं ही काली ,
पकड़ केश तेरा ,
खींच लाऊंगी खेतों से ,
पटक सड़कों पे तुझे ,
तेरे इज़्ज़त के साथ खेलूंगी ,
अपनी चुन्नी उतार ,
अपने माथे पे बांधूंगी ,
भोंक भाला तेरे छाती पे ,
अपने जीत की ध्वज लहराऊंगी ा