उस दिन चूड़ियों से मैंअपने हाथ की नब्ज नहीं काटी , और न ही स्लीपिंग पिल्स का एक्स्ट्रा डोज लेकर ,
गहरी नींद में हमेशा के लिए सो गयी थी ,
जैसा की फिल्मों में अक्सर नायिका करती है ा
आसान नहीं था वो दिन मेरे लिए ,
टूटे दिल के तमाम टुकड़े को समेटकर ,
बनावटी मुस्कुराहट के पूछे विसर्जित करी थी ,
एक सैलाब सा आया हुआ था अंदर ,
पर आँखों से बूँद का एक कतरा भी नहीं निकला ,
एक चुप्पी चीख रही थी हृदय में कहीं ,
पर होठों से उफ़ तक नहीं निकला ,
एक तरफ मेरी जान मुझसे जुदा हो रही थी ,
तो दूसरी तरफ मैं जीने की रस्म निभा रही थी,
जाते जाते उसने यही तो कहा था मुझसे ,
''कहीं भी रहो पर ऐसे मत जीना की ऊँगली मुझ पर उठे''
हाँ उसका यही आखिरी लब्ज तो मेरी साँसों को थमने नहीं दिया ा