ये वही जगह है जहाँ पहली दफा मैं उससे मिली थी ,
हर शाम की तरह उस शाम भी मैं अपनी तन्हाई यहाँ काटने आई थी ,
मुझे समंदर से बातें करने की आदत थी ,
और मैं अपनी हर एक बात लहरों को बताया करती थी ,
अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे समंदर के उस पार कोई हो ,
लहरों के कलकल में जैसे उसकी आवाज़ हो ,
जो नहीं भी था और था भी वह क्यों मुझे अपनी तरफ खींच रहा था ,
जिसकी तस्वीर भी नहीं था मेरे आँखों में ,वह मुझे क्यों महसूस हो रहा था ,
कुछ पल को ऐसे लगा जैसे मेरा वहम हो ,
उस पार भी कुछ भी नहीं बस समंदर की लहर हो ,
मैं उठकर यहाँ से जाने ही वाली थी ,
तभी एक कागज की कस्ती मेरे पास आकर ठहरा ,
जिसपर लिखा था मैं तेरा वहम नहीं , तेरा हमदर्द हूँ यारा ,
मैं तुमसे मिलने आऊँगा , तुम मेरा इंतज़ार करना ,
वर्षों बीत गया है , तब से आज तक हर रोज मैं समंदर पर आती हूँ ,
टकटकी लगाकर समंदर के उस किनारे को देखती हूँ ,
एक रोज वो आएगा , इसी उम्मीद में हर शाम उसका इंतज़ार करती हूँ ा