अतीत से दामन छुड़ाकर ,आज नये सफर का प्रारम्भ करती हूँ मैं ,
क्या पाया ?क्या खोया ?सब भूलकर ,एक अनजान मुसाफिर बनती हूँ मैं ,
दुनिया की नजरों में उलझी थी अबतक , आज गुमनामी को स्वीकार करती हूँ मैं ,
कल तक भ्रम में मैं जीती रही,
आज हकीकत अपनी पहचान कर , वापस जमीं पर चलती हूँ मैं ा
हर टूटते ख्वाब के साथ मैं टूटती गयी , अब टूटे सपनो पर निराशा नहीं ,
झूठे वादों में हमेशा जकड़ी गयी , अब कसमों में उलझने का इरादा नहीं ,
मैं हवाओं पर पाँव रख चलती रही , गिर गयी पर कोई परवाह नहीं ,
थी मंजिल कई पर कहीं न पहुँची ,
आज सिर्फ राही हूँ मैं , अब कोई मंजिल नहीं ा