ऐ बादल इतना क्यों बरस रहे हो ?
तुम्हारे बूँद की थपेड़ों से ,
मेरा उदास मन पिघल रहा है ,
कागज की कश्ती पर ,
सवार हो ये ख्याली मन ,
उसकी गली में निकल जाता है ा
ऐ बादल इतना क्यों गरज रहे हो ,
जो ख्वाब महीनों से ,
मेरे अंदर सो रहा था ,
हौले -हौले वो भी जग रहा है,
तेरे बूँद की ठंढक पा ,
कोई गरम ख्वाहिश सुलग रहा है ा
ऐ बिजली इतना क्यों करक रहे हो ?
क्या याद है तुम्हे ?
उस रात तुम्हारी करकराहट से डर,
उसके सीने से जा लगी थी ,
अफ़सोस की इस बार वो नहीं है ,
जैसे बारिश का क्षणिक बुलबुला ,
क्षण से टूट जाता है ,
कुछ इस तरह ही ,
मेरी ख्वाहिशें , मेरा ख्वाब
सबकुछ रूठ सा गया है ा
जो आग पिछली बारिश में लगी थी ,
अबकी बारिश में वो राख हो गया है ,
लेकिन जज्बात और एहसास से ,
आज भी गरम -गरम धुँआ निकल रहा है ा
ऐ बादल इतना क्यों बरस रहे हो ?