मन के उथल पुथल को ,
शब्दों में कैसे ढालूँ ,
जो महसूस तेरे लिए करी हूँ ,
तुम्हे कैसे मैं बताऊँ ा
तुम तो कभी आते ही नहीं ,
न हकीकत में ,न ही ख्वाब में ,
हाँ ,अक्सर तुम्हारी याद आ जाया करती है ,
कभी सुर्ख होठों की मुस्कराहट बन ,
तो कभी आँखों की नमी बन ा
मेरे नींद के आगोश तले ,
तुम्हारे बेचैन धड़कन की ,
ये आहट कैसी है ,
क्या दिल ही दिल में ,
तुम मुझे याद करते हो ा
तुम लाख छुपा लो ,
चाहे जितना भी झुठला लो ,
दिल में चाहे जिसे भी कैद कर लो ,
पर तेरे रूह को, सिर्फ हमने ही छुआ है ,
और तुम्हारी नजरें भी तो ,
सिर्फ मुझे ही ढूंढ़ता है ा
आखिर ये जिद कैसी है ,
हमारी भी और तुम्हारी भी ,
न हम तुम्हे स्वीकार करते हैं ,
न तुम मुझे पुकारते हो ,
न जाने किस बात पर हमदोनो,
एक दूसरे से नाराज़ हैं ा