एक वक़्त की लहर थी ,
कुछ इस तरह से आके चला गया ,
कभी दामन में खुशियां समेट लाया ,
कभी आँसुओं का सैलाब दे चला गया ा
मौसम की तरह करवट बदलता है ,
कभी बनके वो पतझड़ ,
शाख को तन्हा कर जाता है ,
कभी खुद ही बादल बन ,
धरती की प्यास को बुझाता है ा
कभी जीत बनकर वो ,
आकाश को छुने का हुनर सिखाता है ,
कभी हार बनकर वो ,
धरातल से हमें जोड़ जाता है ा
अक्सर उलझी हुई जिंदगी को ,
पल में सुलझाता है ,
कुछ सुलझे हुए रिश्तों को ,
हमेशा के लिए उलझा जाता है ा
बुझती हुई चिरागों को ,
नूर दे रौशन कर जाता है ,
और अक्सर जलती हुई समां को ,
बेरहमी से बुझा जाता है ा
आना जाना काम है इसका ,
हम क्यों सोचें उसको इतना ,
हमने किया जो कर्म यहाँ पर ,
कल फल वही तो पाना है ा
वक्त कब रुका है किसी के लिए ,
लोग ही थम जातें हैं कुछ पल के लिए ,
जो वक्त से कदम मिलते चले ,
जिंदगी आसान हो जाता है उसके लिए ा